यहां बैठे नायाब चेहरों में मैं हीरा तलाशता हूं,
कस्ती में बैठ कर मैं किनारा तलाशता हूं,
उम्र गुजार दूंगा यूं ही इजहार करते करते,
मैं एक लड़का हूं और लड़की तलाशता हूं।-
मैं अपना गम भूल भी जाऊं तो कैसे छुपाऊं,
अपनो को बता नहीं सकता दूसरों को कैसे बताऊं,
अपने जिंदा रहते रहते सब कुछ जलाना पड़ेगा,
लाश बन जाने पर खुद को कैसे जलाऊं,
मैं सोचता हूं किसी रोज अकेला मर जाऊं,
चिंता इस बात की है मैं जहर कैसे ले आऊं,
तकलीफ होती है इस बिन रोशनी वाली जिंदगी से,
आत्मा मरती जा रही है इस शरीर को कैसे समझाऊं।-
मैं लौट कर फिर उस रात नहीं गया,
शादी में तो गया पर उसकी बारात नहीं गया,
मैं रोया उसे देख देख कर शादी के जोड़े में,
समझा रहे लोगों की बात पर मैं नहीं गया,
भूल जाऊं मैं ऐसे कैसे किसी लापरवाह को,
जो कुछ मैने दिया वो सब उसके साथ नहीं गया,
तड़पता हूं आज भी उस जैसे शख्स की हां को,
क्योंकि उसकी गर्दन तक मेरा हाथ नहीं गया।-
छोटे शहरों में रहने वालों को नौकरी पसंद होती है,
जैसे एक शख्स को हर एक लड़की पसंद होती है,
नसीब में जो लिखा है वही होने वाला है मेरे दोस्त,
शख्स को उसकी पसंदीदा औरत मिलना भी किस्मत होती है,
बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद नहीं टिकता उम्र भर,
सलीम अनारकली जैसों की बरकत अक्सर दीवार होती है,
तमाम उम्र काट दोगे महबूबा की गोद में,
सुकून तो सिर्फ मां की गोद होती है,
हमने भी देखा है लड़ते दो पसंदीदा को आपस में,
इस जंग में आखिर कुछ तो बात होती है।-
जमाने भर का नहीं मन भर दीजिए,
अपनी मोहब्बत में हमें समा लीजिए,
यकीनन हमें तुम्हारा होने में समय है अभी,
एक पल को अपनी घड़ी की सुइयां बढ़ा दीजिए,
रोज रोज ताकते हैं आसमान की ओर आंखों से,
इन आंखों पर अपना चेहरा लगा दीजिए,
झुमके पहनाने के बहाने चूमते तुम्हारे कानों को,
कुछ भी करके बस हमें अपना बना लीजिए।-
रात भी मुश्किल और दिन भी मुश्किल,
उसका होना मुश्किल उसका हिज़्र भी मुश्किल,
मैं लौट आया उल्टे कदम दहलीज लांघकर,
मेरी मंजिल मुश्किल उसका रास्ता मुश्किल,
सोचता हूं कई बार अब आगे क्या होगा,
उसका हंसना मुश्किल मेरा रोना मुश्किल,
कहता हूं दिल की बात अब तुम सब से,
उसका आना मुश्किल मेरा जाना मुश्किल।
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तुम्हारे दुपट्टे के नीचे मैं आ जाऊंगा,
जुल्फों में तुम्हारी मैं उलझ जाऊंगा,
निकलूंगा एक दिन करवट बदल कर,
और तुम्हारे होठों की सिलवट बनकर मैं लेट जाऊंगा,
मैं हूं ही नहीं वो लड़का जो शर्माता रहूं,
मैं अपनी हद से ही आगे निकल जाऊंगा,
देखना किसी रोज चौराहे पर मिलूंगा तुम्हे,
मिलते ही चूमूंगा हाथ और बिथर जाऊंगा|-
जिसे देखने भर से फुर्सत नहीं मिलता था,
उसका चेहरा देखने का मन नहीं करता,
जिसका एक आंसु भी नहीं गिरने देता था,
उसकी कब्र भी खुद जाए तो ग़म नहीं होता।
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ताल्लुक इतना कि हमेशा वो याद आते हैं,
जैसे बुलाए गए रिश्तेदार हर बार आते हैं,
चेहरा ऐसा कि जो छुपाए भी नहीं छुपता,
ये बेहया पर्दे तो अपने आप आते हैं|-
तुम्हारे बिन मैं अपना दिल लगा लूँ अगर इज़ाजत हो,
मैं हंस तो नहीं पाऊंगा थोड़ा मुस्कुरा लूं अगर इज़ाजत हो,
किसी अंजान के साथ ये शाम का जश्न भला कैसा होगा,
मैं इस बार दिवाली अकेले मना लूं अगर इज़ाजत हो|-