अंत ही आरम्भ है   (गुज्जू ✍️)
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Joined 24 May 2020


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उजाड़कर एक बाप की लाडली बेटी को,

देखो किस तरह मुस्कुरा रहा वो अनजान बनकर...!!

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मैं तो तुझसे नाराज़ ही नहीं,

बात तो बस गलती मान लेने की थी.....

तुमने रिश्ता ही तोड़ देना मुनासिब समझ लिया..!!💔🥀

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अगर तू भी मानता था मुझे हिस्सा अपने हृदय का,

तो...

तुझे महसूस क्यों नहीं हो रही तकलीफें मेरी...!!

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जा ......अब नहीं आती तेरे पीछे तुझे बुलाने को


अब तू ही ढूंढ मुझे बस देर न कर देना आने में..!!💔🥀

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एक औरत कभी भी अपने पसंदीदा मर्द के
जीवन में दूसरी औरत बर्दाश्त नहीं कर सकती,

मैं तो वो भी करके बैठी हूं.....
अब तू ही बता कैसे बयां करूं अपनी मुहब्बत को..!!

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दूसरों को संभालते संभालते ,
पता ही नहीं चला कि कब ख़ुद ही इतना बिखर गई कि...अब समेटना भी मुश्किल हो गया है..😔

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उड़ाकर नींद मेरी आंखों का,
देखो कैसे सुकून से सोया है...!!
उसको इस बात की भनक भी नहीं,
उसने अपने जीवन से क्या आज खोया है...!!
गवां दिया सबकुछ मैंने जिस एक इंसान के लिए,
ठुकरा दिया मुझे आज उसी ने एक अनजान के लिए..!!

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रो रोकर अब थक चुकी है ये मेरी आँखें,
सूख चुका है अब इन पलकों का समुंदर भी,
ऐ मेरे मालिक इतना तो रहम कर,
या तो तू मुझे सुलाने आजा या फिर....
अपने पास बुला ले.....!!😭😭😭

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रात के एक पहर में जब आशु भी सुख जाते है,
रह जाती है एक कसक दिल में जो दिल को चीर जाती है...!!

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आखिर एक इंसान को
कितना और किस हद तक चाहना पड़ता है
कि...
उसे किसी दूसरे की जरूरत न पड़े ...!!😭

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