Anshuman Shrivastava   ("MERI KAHANI" ANSHUMAN)
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Joined 27 July 2020


Joined 27 July 2020
18 SEP AT 3:06

नयी तरह से मोहब्बत को गिनना सीख रहा हूँ,
जोड़ना तो आता था, अब घटाना सीख रहा हूँ।

न जाने कितने लम्हे बिताए थे हमसे साथ-साथ,
अब लम्हों को अकेले ही बिताना सीख रहा हूँ।

जो ख़्वाब लिखे थे तेरे नाम की स्याही से,
उन्हें राख बना कर मिटाना सीख रहा हूँ।

हर दर्द का हिसाब कभी तेरे पास ही था,
अब आँसुओं का ख़ुद ही फ़साना सीख रहा हूँ।

अंशुमन की मोहब्बत रही एक-तरफ़ा हमेशा,
अब उस एक-तरफ़ा में भी मुस्कराना सीख रहा हूँ।

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9 SEP AT 23:42

उसने कहा हमें, एक लम्हा गुज़र जाने के बाद,
क्या फिर कभी मिलोगे हमें, गुज़र जाने के बाद।

वो मुस्कुराहटें, वो अहसास, सब दफ़्न हो जाएंगे,
क्या फिर भी पहचानोगे हमें, गुज़र जाने के बाद।

जिस राह पे तेरा साया अब तलक चलता रहा,
क्या उसी राह पे मिलने आओगे हमें, गुज़र जाने के बाद।

अंशुमन ने सींचा है मोहब्बत अपनी साँसों से,
क्या उसको निभाओगे हमें, गुज़र जाने के बाद।

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7 SEP AT 0:25

उसने हमें छोड़ के जाते वक़्त ये भी न पूछा कि तुम्हारा क्या होगा,
वही तो दुनिया थी हमारी, उसके बिना अब हमारा क्या होगा।

जिसने साँसों में रौशन किए थे चिराग़ मोहब्बत के हर शाम,
उस रोशनी के बुझ जाने पर अब दिल का उजियारा क्या होगा।

हमने जिस राह को जन्नत समझ कर सजाया था हर ख़्वाब से,
उस राह पे तन्हाई का सफ़र है, अब लौटना दोबारा क्या होगा।

वो मुस्कुराहटें, वो बातों की मिठास अब खामोशी में दफ़न हैं,
हमारी रातों का सहारा गया, तो इन नींदों का सहारा क्या होगा।

अंशुमन अब भी उसके नाम की स्याही से लिखता है ग़ज़लें,
पर ये अधूरा क़िस्सा मुकम्मल न हुआ, तो अफ़साना क्या होगा।

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3 AUG AT 20:04

अभी ज़िंदगी तुम्हारे साथ जीना
बहुत बाक़ी है मेरे दोस्त,,
तुम्हारी डायरी में मेरे लिए
कुछ पन्ने कोरे ही छोड़ दो||
कभी फिर मिलेंगे तो
फिर से भरूंगा तुम्हारी डायरी,,
अभी इस मुलाक़ात को
ऐसे अधूरा ही छोड़ दो||
तुम्हारी डायरी में मेरे लिए
कुछ पन्ने कोरे ही छोड़ दो....

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28 JUL AT 8:11

हर रोज़ एक सवाल के साथ पल रही है ज़िंदगी,
कल, आज और कल के बीच चल रही है ज़िंदगी।

कभी उम्मीदों की चिट्ठी, कभी ख़ाली सा लिफ़ाफ़ा,
हर रोज़ नई डाक से छल रही है ज़िंदगी।

वो जो होना था, ना हुआ — जो हुआ, अधूरा सा,
इक 'काश' के धागों से सिल रही है ज़िंदगी।

कभी आइनों में उलझती, कभी परछाइयों में,
सच और फ़रेब की रस्सी पर चल रही है ज़िंदगी।

'अंशुमन' भी अब बहुत कम मुस्कुराता है,
साँसें बाक़ी हैं मगर थक रही है ज़िंदगी।

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27 JUL AT 9:57

वक़्त ने सब बदला — पर वो पल दबा रखा है।
अभी भी किताबों में तेरा फूल दबा रखा है,

तेरी आवाज़ अब ख्वाबों में कम आती है,
पर नींद की तह में तेरा नाम दबा रखा है।

खुलती नहीं अब वो खिड़की जहाँ तू रुकती थी,
पर पर्दों में आज भी तेरा शाम दबा रखा है।

लोग कहते हैं — अब तो सब भूल जा,
उन्हें क्या पता, दिल ने तेरा सलाम दबा रखा है।

'अंशुमन' अब भी हँसता है भीड़ की तन्हाई में,
पर आँखों की कोरों में इक जाम दबा रखा है।

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26 JUL AT 7:38

ख़्वाहिशों ने कहा — चलो एक ख़्वाब बुनते हैं,
दिल ने हँस के कहा — अब उतना धागा नहीं बचा।

कभी चुपचाप लिखा तुझे, कभी खुद से छुपाया तुझे,
पर वो किस्सा अब ज़ेहन में ताज़ा नहीं बचा।

हर मोड़ पर सोचा कि शायद तू मिल जाए,
पर हर मोड़ ने कहा — अब वो रास्ता नहीं बचा।

तू था तो हर बात में कुछ ज़िंदगी सी लगती थी,
अब बातों में भी वो पहला मज़ा नहीं बचा।

अंशुमन अब भी बैठा है उसी छत के कोने में,
जहाँ बारिशें तो हैं — पर अब कोई फ़साना नहीं बचा।

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24 JUL AT 0:10

क्यों तलाशूँ तुझको जब मेरी हर साँसों में बाकी है तू,
हर ख्वाब, हर नींद, हर दुआ में बाकी है तू।

मैंने बुझा दिए थे चिराग़ तेरी याद के सारे,
पर दिल की इन राखों में भी बाकी है तू।

खुद से वादा किया था तेरे बिना जीने का,
पर हर धड़कन की साजिश में भी बाकी है तू।

आईनों से अब मैंने भी नजरें चुरानी सीख लीं,
पर दिल की हर दरारों में भी बाकी है तू।

मैंने लिखना छोड़ा था कि तेरी यादें ना लौटें,
पर हर काग़ज़ की स्याही में भी बाकी है तू।

अंशुमन को बस इतनी सी शिकवा है तुझसे,
कि दिल की धड़कनों में अब भी कहीं बाकी है तू।

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17 JUL AT 23:55

तुम्हारे बाद दिल को संभालने का ख्याल ही नहीं आया,
टूटा कुछ इस तरह कि जुड़ने का ख्याल ही नहीं आया।

रातों ने पूछा तन्हाई से तेरी बातें क्यों करता हूँ मैं,
तन्हाई बोली – कभी तुझे भूलने का ख्याल ही नहीं आया।

जिन ख्वाबों में तेरा चेहरा हर रोज़ उतरता था,
अब उन ख्वाबों में भी तुझे ढूंढने का ख्याल ही नहीं आया।

लौट कर आओ कभी तो पूछूँगा तुमसे,
क्यों चले गए ऐसे कि पलटने का ख्याल ही नहीं आया।

लोग कहते हैं कि वक़्त सब कुछ ठीक कर देता है,
मुझे लगता है शायद वक़्त को बदलने का ख्याल ही नहीं आया।

अंशुमन की तुम्हारे बाद सांस तो चल रही है मगर,
उसे ज़िंदगी को पहले जैसे जीने का ख्याल ही नहीं आया।

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6 JUL AT 1:14

बिगड़ गए थे हम तेरे इश्क़ में थोड़े बहुत,
सँवर गए हैं अब हम तुझसे जुदा होके थोड़े बहुत।

तेरे बिना भी अब ये दिल जीना सीख गया,
ख़ुद से ही मिलने लगे हैं ख़फ़ा होके थोड़े बहुत।

वो रातें, वो बातें अब किस्से बन गईं,
हम बदल गए हैं वक़्त की सजा होके थोड़े बहुत।

अब तेरी याद भी बस हवा सी लगती है,
हम भी हल्के हुए दर्द सह के थोड़े बहुत।

अंशुमन अब इश्क़ का शौक़ रखता नहीं,
वो भी सीखा है दुनिया से खफ़ा होके थोड़े बहुत।

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