अकसर भटक जाता हूँ राह से मैं,हर बार संभाल लेता है वो।
कभी मित्र तो कभी शिक्षक बन कर,सही राह दिखा देता है वो।
अरे परेशान क्यूं हो अस्तित्व में उसके,याद तो करो दिल से,हमेशा अपना लेता है वो।
मीरा का श्याम कहो या शबरी का राम कहो उसे,नाम लेने मात्र से इस भवसागर से पार लगा देता है वो।
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