जिद थी कि पाकर खोना नहीं है।
ये रिश्ते बड़े नाजों से पलते है।।
पर जब सब पलटे बारी-बारी
तो यह याद आया कि हर रिश्ते की
एक उम्र होती है, जो वक़्त के साथ ढलते है।
- कुमार अंश-
मुस्कुराते चेहरे है, आँखों में नमी है।
टूटा है मन लेकिन होठों में हँसी है।
जिंदगी की जंग इतनी निष्ठुर है यहाँ पर
कफ़न में है पैर, पर फुरसत कहाँ है।
जी रहे है, मर- मर के सब यहाँ
मोहब्बत का पता ढूढों, रुश्वत सब यहाँ है।
रुश्वत सब यहाँ है। रुश्वत सब यहाँ है।
- कुमार अंश-
समंदर शांत है तो लोग उसको खेल समझते है।
जो दे वो सहारा तो लोग उस पर ज़ुल्म करते है।
बिखर जाती है इंसानों कि सारी नस्लें
जो गर आ जाये वो अपने रौद्र रूप में जिनको लोग खेल समझते है।
शांत है तो शांत रहने दो
क्यों छेड़ते हो उसको
वो शिव है
जब शांत है तो भोला-भंडारी कहलाता है।
और अपनी पर आ जाये तो तांडव मचाता है।।
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गुंजाइश बहुत होगी तेरे यहाँ गुलशन बिखेरने की.
पर याद रख ए शहर तेरे पेट को रोटी मेरा गाँव देता है।- कुमार अंश-
आधी निकल गयी,
आधी बाँकी है।
जिंदगी के न जाने
कितने इंतिहान बाँकी है।
रुसवा हो रही अब रूह भी।
जिंदगी के कुछ और ठोकर लगने बाँकी है।
खो रहा है अब सबर भी इस कशमकश में
जिंदगी घिसट रही है, अभी दौड़ना बाँकी है।
आधी निकल गयी, आधी अभी बाँकी है।-
लबों तक बात नहीं आती है अब,
कि दुश्मन अब कोई गैर नहीं।
दुश्मन हमारे अपने ही है।
और उनका कोई तोड़ नहीं।
दुश्मन कितना ही बलवान हो
हराने में मज़ा आता है।
पर दुश्मन खुद अपने हो तो
जीतने से ज्यादा,
खुद को मिटाने में मज़ा आता है।
लबों तक बात नहीं आती है अब
कि दुश्मन अब कोई गैर नहीं।-
होना हो तो रावण राज हो
राम-राज्य नहीं चाहिए।
रावण राज्य में किसी की औकात नहीं कि
अपने राजा के प्रति कुछ भी उल्टा-सीधा बोल दे।
पर राम-राज्य में कोई भी झूठा आरोप लगा दे
और उस आरोप को जानकर
कोई राम सीता को घर से निकाल दे ऐसा तो राम राज्य बिल्कुल भी नहीं चाहिए।
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सही होते हुए भी सीता को
अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी।
धोबी का क्या था
वो तो झूठा लाँछन लगाकर
मौन हो गया।-
कभी देखा नहीं मैंने
कि पानी का रंग क्या है ?
माथे पर एक टीका क्या लगा लिया
साम्प्रदायिक हो गया...........-
बेहिसाब बाते हुई तुम्हारे साथ
तो ये जाना मैंने
कि मिट्टी की खुश्बू से बेहतर
कोई इत्र नहीं होता।-