Anshul Pathak   (अंशुल पाठक)
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Joined 28 December 2018


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Joined 28 December 2018
27 NOV 2021 AT 9:09

“मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ
फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ”

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20 MAY 2021 AT 15:14

जन्मदिवस
जन्मदिवस पर प्यार सभी का
फिर से मिला इक बार सभी का
फिर बारी बारी यार सभी का
हृदयतल से आभार सभी का।।

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7 MAY 2021 AT 18:32

"वो कागज़ और मैं, कलम सा लगता हूँ,
उसे मिलने के बहाने, रोज लिखता हूँ,
स्याह मोह्हबत का,कागज़ चुम लेता है,
कोई गज़ल फिर, उसके नाम कर देता हूँ l"❤❤

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3 MAY 2021 AT 7:06

लौट आयेंगी खुशियाँ, अभी गमों का शोर है
संभलकर रहो यारो ये इम्तिहानों का दौर है।

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28 APR 2021 AT 0:14

किनारे आँखों के रह रह कर भर जाते हैं ,
सब लम्हे मेरे तुम बिन ही गुज़र जाते हैं !!

टूटा नहीं हूँ मैं रूठा नहीं हूँ मैं!!!

दबे आंसुओं में भीगा नरम नरम सा मन
और जरा सा प्यार लिए बैठा हूँ !!

जिम्मेदारियों की धुंधली छाँव में
तुम देख नहीं पाती अक्सर मुझ को!!

मैं बस तुम्हारा इंतज़ार लिए बैठा हूँ !!

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5 MAR 2021 AT 0:36

किनारे आँखों के रह रह कर भर जाते हैं ,
सब लम्हे मेरे तुम बिन ही गुज़र जाते हैं !!

टूटा नहीं हूँ मैं रूठा नहीं हूँ मैं!!!

दबे आंसुओं में भीगा नरम नरम सा मन
और जरा सा प्यार लिए बैठा हूँ !!

जिम्मेदारियों की धुंधली छाँव में
तुम देख नहीं पाती अक्सर मुझ को!!

मैं बस तुम्हारा इंतज़ार लिए बैठा हूँ !!
जय प्रकाश पाठक

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1 JAN 2021 AT 8:30

Wish you and your family
a very happy jayful healthy
prosperous new year ahead. !

HAPPY NEW 🆕. YEAR
जे पी पाठक

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12 NOV 2020 AT 14:32

*दोस्ती* ही असली धन है,
मेरे सभी सोने के सिक्कों को
*! धनतेरस की शुभकामनाएं !*🙏🏻

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31 OCT 2020 AT 8:20

कोई मसला है तो बातचीत क्यों नहीं करता।
उलझे मुद्दों पर समझाइश क्यों नहीं करता।

दुनिया भर की शिकायतें है तुझे मुझसे,
एक-दो शिकायत खुद से क्यों नहीं करता।

दो कदम तुम चलो दो हम चलते हैं,
तू रिश्ते में दूरियां कम क्यों नहीं करता।

जो मिलना ही है कयामत की रात हमें,
तू सब्र से कयामत का इंतजार क्यों नहीं करता।

बात बात पर झगड़ता है दुनिया से,
तू दुनियां की पसंद का काम क्यों नहीं करता।

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11 AUG 2020 AT 10:11

“हो काल गति से परे चिरंतन, अभी यहाँ थे अभी यहीं हो,
कभी धरा पर, कभी गगन में, कभी कहाँ थे,कभी कहीं हो,
तुम्हारी राधा को भान है तुम,सकल चराचर में हो समाये,
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो..!”

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