Anshu Yadav   (*Anशु Yaदv*)
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राधे राधे
Joined 29 April 2021


राधे राधे
Joined 29 April 2021
10 HOURS AGO

क्या राज लिये रखे हो ,
जो इतना तुम परेशान हो रखे हो ,
मसला है भी कुछ की बस ,
युहि ख्यालो में आबाद रहते हो ,
सुना है बारे में तुम्हारे बहुत कुच्छ ,
तो बताओ जरा कि क्या सच है ,
तुम दो तरफा मिजाज लिये रखते हो ?

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13 HOURS AGO

समझ नहीं आता क्यों उदास हुए बैठी हूं ,
खुद से ही क्यों नाराज हुए बैठी हूँ ,
मांगना जवाब खुद से आदत सी हो गई है ,
पता नहीं क्यों इतने सवाल किये बैठी हूँ ,
जानती हूं बिता वक्त वापस नहीं लौटेगा ,
फ़िर क्यों खुद को इतना परेशान किये बैठे हैं ,
जब कोई वजह ही नहीं इस मेरी उदासी का ,
तो फ़िर क्यों मैं बेवज़ह उदास हुए बैठी हूँ.

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13 HOURS AGO

Be your own business

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23 HOURS AGO

किसी के साथ बस चलने के लिए,हमने अपने राश्ते बदल दिए
जज्बात, तोर-तरीक़े,और बहुत हद तक खुद को बदल लिया
अब खुद को खो कर हुबहु उसके जैसे दिखने लगे हैं,
उसकी बाते हर वक्त जुबान पर,
उसका चेहरा हर पल आँखों में और
बस उसकी ही यादें हर पल दिमाग रहती है
पर मैं इन जुज्बातो को खारिज करना चाहती हूँ,
उसे दिलों-दिमाग,ज़हन से निकाल कर
खुद को वापस खुद में पाना चाहती हूं
पर हैरानी होती है कि.....
"कोई इतना भी क्या एक तरफ़ा खास हो गया
की खुद से खुदा से आगे हो गया"



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4 JUN AT 20:28

मुलाक़ात उससे बहुत मुश्किलों से होती है
और शायद मुकद्दर के मर्जी से होती है
रिश्ता तुम्हारा मेरा पता नहीं क्या है
वह मुझे छोड़ना नहीं जानता,और मैं उसे अपनाना नहीं
पर वह कोशिश करना भी नहीं छोड़ता ज़िद्दी है ना,
पर कदर खुद से ज्यादा करता है,
इज्जत,भरोसा वो बेशुमार मुझ पर करता है।
पर उसपर ऐतबार पता नहीं मेरा दिल क्यु नही कर पाता
वो एक हा सुनना चाहता है और मैं बस जीना चाहती हूँ,
खामोश शांत हो कर उसे और उसके लम्हे,वक्त को
पर इसिलिये शायद मैं परेशान हूं
कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है ?
अपने ईमान से ज्यादा किसी पर एतबार
कोई कैसे रख सकता है।मेरी हर ग़लतियों पर परदा,
तुम मेरी हर ना समझ को कोई कैसे टाल सकता है
समझ नहीं आता,भला इसे दिल इंकार कैसा कर पाता है ?
मैं सच में हेयरान हूं कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है?

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24 MAY AT 3:15

प्रकृति की गुहार

आज बचाओं कल सजाओं,
आओं हम मिलजुल कर पर्यावरण को शुद्ध बनाएं।
हर परिवार को ये समझायें,
पेड़ लगायें हर कितना जरूरी है,
पेड़, मृदा, मृदा, जल शुद्ध हवा का चलना ।।

ये आज हमारा कल से था, होगा कल ये आज से।
तो कर्म उमारा हम करते जायें,
प्रकृति को उसका दिया थोड़ा तो लौटाते दें अब

अब पहली सी बात रही कहाँ ?
कहाँ रही वो अब शुद्ध सुगंधित ताजी हवा,
कहाँ रही अब कुछ बात पुरानी ?
पर अब शायद यही है परिवर्तन की बारी ॥

तो आओं मित्रों प्रण ठानें,
धरती थी को अपने घर सा सुन्दर बनायें।
बहुत पढ़ लिये बातें धर्म, कर्म कि अब,
आओ अब हम मानवता कि नयी किताब लिखें ।।

दिखावें से बाहर हम, जरूरतों को सर्वत्र अपनायें
अनावश्यक ना वायु, जल,ध्वनि,प्लास्टिक,दृश्य इत्यदि
प्रदूषण से खुद को और आने वाले पीढ़ी को बचाये ।

प्रकृति की गुहार सुनो,
कुछ इसका भी मान धरो।
ये माता है हमारी,
इसका तो इसका तो
तुम अब सम्मान करों ।।

अंशु यादव

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24 MAY AT 2:38

अब नींद नहीं आती है, हा अब नींद नहीं आती है
ना किसी की याद आती है ना मेरे मन में कोई मलाल हैं
बस बहुत कुछ अंदर से खाली-खाली सा लगता है
वो जो कुछ अपना सा ख़तम हो जाने पर महसूस होता है,
बिल्कुल वही-वही एहसास जो लिखा नहीं जा सकता,
जैसे खोखला हो जाना अंदर से पूरी तरह,पर क्यू ?
पहले भी थी क्या मैं ऐसा ? पता नहीं,
खुद को खो कर आख़िर क्या पाना था या है मुझे पता नहीं,
बस नहीं पता, आख़िर क्या खोया है मेरा ?
क्या ढूंढने निकली हूं मैं ?
किसकी तलाश है, है भी तो क्यों हैं ?
पर अब यह अकेलापन अच्छा लगने लगा है,
लोग पागल बोलते तो हैं, पर अब वो लोग सही लगने लगे हैं।
खैर खैरात में मिलि ये चीजें, महज़ लोगो की सोच है
जो बदल नहीं सकते हम, तो छोड़ो जाने दो,
पर अब बस निंद नहीं आती पता नहीं क्यों
पर बस नहीं आती।

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11 MAY AT 1:38

पूरे देश में तिरंगा लहरा रहा है, लोगो में एकता,देश प्रेम,देशभक्ति का ये जुनून हम्ने आजादी के वक्त पढा था जो आज हमने खुद मे महसूस किया है,आज देखा हमने अपने अंदर भी वहीं अपने वीरो का चोला जो ओढ़ उन्हें रंग दिया था आज़ादी का तिरंगा। स्मझ आया क्यों लोग मर-मिटने को तैयार रहते हैं अपने मातृभूमि,देश के लिए। ये 26 जनवरी 15 अगस्त नहीं है फिर ये क्या है ? ये युद्ध है पार्थ *भारत पाकिस्तान* की, ये युद्ध है बस दो देशो की नहीं,मुल्क की नहीं, ये है वो युद्ध जो लिखा गया हैं इतिहास-पुराण मे,ये वही युद्ध है जो हर युग में हुआ है,
*अधर्म के विरुद्ध,धर्म के नाम पर इंसानियत को मरने वाले लोग के विरोध धर्म की बात कर रहे हैं अधर्मियो के विरुद्ध*,
ये युद्ध है कलयुग का पर ज़िकर हर युग में है,चाहे सतयुग,त्रेता,द्वापरयुग और अब कलियुग।शीर्षक सदा से एक ही रहा है,और अब परिनाम भी वही होगा जो आपने-हमें और इतिहास ने रचा,हम्ने पढ़ा है। *अधर्म पर धर्म की जीत*
*जय हिन्द जय भारत* 🇮🇳
अंशु!

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5 MAY AT 20:36

अब मेरा उसे समझाने से ज्यादा
उसका हमे समझना ज्यादा जरूरी है

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3 MAY AT 21:50

तारों भरी एक रात में
तेरे ख़त पढेंगे साथ में
कोरा जो पन्ना रह गया
एक काँपते से हाथ में

थोड़ी शिक़ायत करना तू
थोड़ी शिकायत मैं करूं

नाराज़ बस ना होना तू,

जिंदगी...................

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