मैं मुझमें हूँ कितना तन्हा, कोई जान ये पाए ना।
कितना भी आवाज़ दूँ खुद को, वापस लौट के आये ना।
आहिस्ता-आहिस्ता चीज़ें, फीकी पड़ती जाती हैं,
वक्त की मार से देखो अब तक कोई भी बच पाए ना।
मैं बेख़ौफ़ सा धीरे धीरे-धीरे अपनी राह बनाता था,
लेकिन वो आकर बोला, कोई मुझसे आगे जाए ना ।।-
Poetry is my passion
तो जीवन सुखमय हो जाए।
कितनी भी हो कड़ी धूप पर मेरे सर को सहलाए।
मैं कैसे कह दूँ के कर्ज़ चुका दूँगा धीरे धीरे,
कोई उन बूढ़े हाथों की ताकत कैसे लौटाये।
जिसने काटीं मेरी ख़ातिर जाग जाग कर सब रातें,
कोई उस माँ से कह दो अब तो रातों को सो जाए।
मैं उनका हूँ अक्स यही बस मेरी है पहचान फकत,
कितनी हो दौलत शोहरत उस दर पे फीकी पड़ जाए।
जाने कैसे उनके अंदर सांसें मैं लेता रहता हूँ,
जो मुझ को मालूम नहीं उनको वो मालूम हो जाए।
बदकिस्मत हैं वो जिनको इस दौलत की भी कद्र नहीं,
ढूंढ के देखो चलता फिरता,रब जो कहीं पर मिल जाए।-
तू मेरे साथ नहीं अब फिर भी, मेरी हर इक खुशी में शामिल है।
ज़िंदा जज़्बात नहीं अब फिर भी, मेरी हर एक खुशी में शामिल है।
छोड़कर ज़िन्दगी मैं तारीखें बदलता गया, तारीखों में ही मेरा नाम आज शामिल है।
वक्त मेरा था तो मैंने न उसको कुछ भी दिया, आज औरों का है तो हर तरह वो काबिल है।।
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आया सावन बीत गया।
फूट रहीं हैं नयी उमंगे, मेरा ख़ालीपन ना गया ।
काश मेरे भी दरवाजे पर दीया कोई जला देता,
कितनी कोशिश की फिर भी मुझसे अँधियारा जीत गया।
लाचारी से गैरों की खुशियाँ को तकता रहता हूँ,
कभी तो वो आकर कह दे, जो बीत गया सो बीत गया।।
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ये जो काले काले बादल झूम झूम के बरस रहे,
जाने किससे मिलने को इनका मन इतना हर्षाया।
सूखी धरती महक उठी और नशा हर तरफ़ है छाया।
ऐसे मौसम में बैठो कुछ भूली बिसरी याद करें।
कुछ औरों की सुने तो कुछ अपने भी दिल की बात कहें।
शायद मुझको भी सुकून दो पल का देखो मिल जाए।
आख़िर ज़िंदा इंसानों में नाम मेरा भी लिख जाए।।-
बाँटा गया देश जब, धरती फूट - फूट के रोती थी।
अपने ही बच्चों के खून से,आँचल रोज़ भिगोती थी।
कितनी शिद्दत,कितनी मेहनत से सींचा हर पौधे को,
पल भर में सब ख़ाक हो गया,बिजली गिरी वो नफ़रत की।
आज भी हम सब शर्मिंदा हैं, कैसी वो नादानी थी।
आज़ादी की शक़्ल थी ग़र वो, उससे भली गुलामी थी।
कम से कम दिल एक थे अपने,अपनी एक निशानी थी।
सबके सुख - दुख साझे हैं, ये माँ से सुनी कहानी थी।
टूट गई वो माला दिल की, बिखर गए वो सब मोती।
गाँठ पड़ गई दिलों में सबके, सोच हो गई अब छोटी।
'बँटवारा' ये शब्द नहीं, सूखा है रेगिस्तान कोई।
कितना भी अश्कों से सींचो, उपजेगा न पेड़ कोई।
चाहे थोड़ा कम ही मिले, करना न गलती ये कभी।
हिस्सों में न बाँटना घर को, माँ हो चाहे मातृभूमि।।-
भाग्य भरोसे मत रहिए, वरना एक दिन वो आएगा।
भाग्य तुम्हारा साथ न देगा, कर्म तुम्हें ठुकराएगा।
जो कुछ है वो आज ही है, कल से तू उम्मीद न रख,
कल क्या हो किसने देखा है, वक्त तुम्हें समझायेगा।
वो ही शोहरत के मालिक हैं, धूप छाँव में जो हैं चलें,
बैठ गए जो रस्ते में, उन्हें मंज़िल कौन बतायेगा ।।-
Thanks a lot Shakshi Bansal for such motivating and beautiful lines.. 😊👍
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तिनका तिनका जोड़ के मैंने, दर - दीवार बनाया था।
आँधी आयी उड़ा ले गई, सबकुछ यार पराया था।
कहाँ से लाऊँ अब वो जज़्बा, वो पहले सी उम्मीदें,
जिनकी ख़ातिर से मैंने तब सबकुछ दाँव लगाया था।
तन्हाई में बैठे बैठे खुद से लड़ता रहता हूँ,
क्यूँ मैंने दिल को पहले महफिल का पता बताया था।।
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Hi guys! I was just going to sign out from my account but then someone helped me by making me realize that I have to write for myself, this is a platform where I 'll get thoughts from many people.. Thanks @AmyLockart for helping to take a correct decision.. 😊
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