ऐसा अक्सर होता है रात के तीसरे पहर में, जब सबकुछ ठहर सा जाता है,
जब सबकुछ शांत हो जाता है,जब सब चुप हो जाते हैं,
हर तरफ सन्नाटा पसर जाता है, उस सन्नाटे में मैं जगता हूं,
और मेरे भीतर तुम जगती हो।
तुम्हारी आवाज़ मुझे अपने गांव लेके जाती है शोरशराबे से दूर। पगडंडियों से सटे हुए बगीचों के बीचोबीच। जहा आम और महुआ के ब्याह कि कहानियां हैं। जहां कदम के तने पर तीर लगा एक दिल बना हुआ है जिसपे मधुमक्खियों के छत्ते से शहद टपकता था। मद्धम मद्धम मीठा मीठा बिल्कुल तुम्हारे होंठ कि तरह ।।
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