तो देखना जो खोया हुआ है .....
वह पा चुका है ।
ये कहने में भी वो असमर्थ ही है ।
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खामोशी कहता हूं,खामोशी सुनता हूं
खामोशी लिखता हूं ,खामोशी पढ़ता हूं।
इस कदर खामोश रहता हूं मैं आजकल ।-
शिव की क्रियान्विति ही शक्ति है।
जो कुछ भी क्रियान्वित हो रहा है ।
क्या वो सरल कर रहा है या जटिल?
या जटिल करके सरल कर रहा है....
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उपजा कंवल हिय प्रेम का,करि करि जतन छिपाय ।
प्रभु मिलन की आस में ,अंसुअन नीर बहाय ।
ज्यों ज्यों सींचे त्यों बढे ,बेल प्रीत की आप ।
बढ़ जाए आकाश भर ,छिपे ना जग सुं छिपाय।
फल फूले ज्यों बेलरी, घनी घनी नित होय।
छांव बैठ फिर पथिक घने ,हरस हरस हिय होय ।
अंशु जांगिड़-
मैं अब नहीं हूं ,
दूसरी दुनिया में मिलने का ,
ख्वाब भी नहीं कोई ....
इस विष को ,
विषधर कंठ सजाएंगे अब।
विष इसलिए कहा खुद को ...
कि ,अमृत को कहां शिव मिलते हैं ।
अंशु जांगिड़-
तुम पानी में प्रतिबिम्बित चंद्रमा नहीं ,
तुम नभ के चंद्रमा हो ....
चेतना दृष्टिगत रहे ।-