नजदीकियों का एहसास कुछ यूँ हुआ तुझसे जो तूने हाथों को छू,आँखों का सैलाब थाम लिया, बाँध आँखों को आँखों से दर्द-ऐ-हाल जान लिया!
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रास्ता नहीं मंज़िल हो मेरी,
कल्पना कोई या ख़्वाहिश अधूरी
साथ रह सकूँ तेरे ये हसरत है मेरी
क्या है ये मात्र मेरी तृष्णा अधूरी...???-
कहाँ पता होती है किसी को,वज़ह जीने की..
किसी को बेवज़ह तो किसी को वज़ह मिल जाती है!-
वाकिफ नहीं हूँ मैं तेरे अल्फाजों से....
पर तेरी आँखें भी किताबों का काम करती हैं!-
हर दफ़ा हर बार वही है
ये जो भी है अधूरा है..... अधूरा ही सही है!-
ऐ वक़्त इतना भी ना मिला कर मुझसे
कि हमें साथ ही वक़्त ना मिले....-
पहले से बेहतर बना देता है इश्क़ तेरा
धुँधला-सा है जो वो और साफ दिखाई देता है!-
बदल गया है वो पर मानता नहीं है
हक़ है मुझ पर उसका पर जताता नहीं है,
नजरें मिला के करता था बातें,
पर अब नजरें मिलाता नहीं है
बदल गया है वो पर मानता नहीं है!-
दुनिया की एकमात्र ऐसी कलाकार जिसे अपनी रचना पर इतराते न देखा
ख़ुद की खुशियों पर कभी खिलखिलाते न देखा
दर्द देख ले अगर आँखों में किसी की तो चुपचाप बैठे न देखा
आँखों को पढ़कर मेरी ज़रूरत जान लेती है
गिरने देगी, पर बिखरने नहीं
उठने के लिये ख़ुद ही उत्साह बढ़ाती है
सबसे आगे नहीं बढ़ना है, सब के साथ चलना है ज़िंदगी, हर पल यही समझाती है
तुम्हें मिलने में कुछ देर हो तो जान लो
कुछ अच्छा है तेरे लिये विधाता के पास
ऐसी नयी कहानियों से नित हौसला बढ़ाती है
किसी के लिये पूरी ज़िंदगी वार देती है
बिन कुछ माँगे निःस्वार्थ भाव से पूरा जीवन सँवार देती है माँ !
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