"मां🌍"
सुबह गर देर तक सोने का मन हो,
तो वो सो लेने देती है,
मेरी सुबह की चाय मुझे अपने हाथों से बनाकर पिलाती है,
कभी भूख न होने पर भी वो डांट कर इक रोटी खिला ही देती है,
जब रहती हूं किसी बात से परेशान,
ना जाने कैसे वो बिन कहे ही समझ जाती है,
गर हो जाऊं कभी बीमार तो पूरी रात मेरे पास बैठकर गुजारती है,
हमारी इक फरमाइश पर वो न जाने क्या क्या बना देती है,
यूं तो समाज की नजर में हो गई हूं मैं बड़ी,
लेकिन मेरी मां आज भी मुझे छोटी सी बच्ची समझ कर मेरे सारे नखरे उठाती है,
सिखाते है लोग लड़कियों को घर के काम काज, जाना है पराए घर ये यहसास दिलाते है,
मेरी मां मुझे आत्मनिर्भर बनना सिखाती है,
जिंदगी की दौड़ में दुनिया से कदम से कदम मिला कर चल सकूं,बस हर पल वो मुझे यही समझाती है,
"जो मैं न कभी कर पाई वो मेरे बच्चे करेंगे" ये कहकर हमेशा हमें सपनो को पाने के लिए और भी जिद्दी बनाती है,
"लोग हंसेंगे हम पर,मजाक बनाएंगे हमारे सपनो का" पर तुम्हें हारना नहीं है,जिंदगी को जीत कर सपनो को पूरा कर दुनिया को जवाब देने का हौसला मुझे मेरी मां हर पल देती है
क्यूंकि ना जाने कितने दुख सहे जिंदगी में, अनगिनत किए है त्याग उन्होंने, फिर भी हम बच्चों को देख हर पल मुस्कुराती है,
मुश्किलातों से लड़ना,
तकलीफों में खुद को टूटने न देना,
इक वही तो है जो हमें सिखाती है।
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