जब कभी मैं आऊँ तुम्हारे पास..
अपने कंधे से दूसरे बोझ हटा देना..
देना अपने कंधे का सहारा..
मेरा सुकून में आशियाना बना देना..
कुछ पूछना नहीं, ना कुछ बताना..
उन खामोश लम्हों को, कर बंद आँखें बिताना..
जताना अपनी मोहब्बत तो अपने हाथों से मेरा सर सहलाना..
फिर छेड़ना कोई किस्सा और अपना हाल बताना..
मैं सब बाँट लूंगी तुम्हारे ग़म..
बस मेरा सुकुन तुमसे है, अपने कांधे से, मेरा सिर ना हटाना-
जब बिगड़ने की उम्र थी तब घर के हालत सही नहीं थे इसलिए नहीं बिगड़े
और जब हालत सुधरे तो हम समझदार हो गए-
कुछ तुम में मैं बाकी, कुछ मुझ में तुम बाकी,
पता नहीं क्यों, अब तक ये रिश्ता है बाकी।
लफ़्ज़ भी थम गए है, पर आँखों में बात बाकी,
बिछड़कर भी देखो, जुड़ने की हर सौगात बाकी।
सांसों में महक तेरी, धड़कन में रूह बाकी,
बातें हुई खत्म, मगर दिल की जुस्तजू बाकी।
सूख गए अश्क़ आँखों के, पर हसरत वही बाकी,
जो रूह तक उतर जाए, वो तेरी दुआएँ बाकी।
कुछ तुम में मैं बाकी, कुछ मुझ में तुम बाकी,
पता नहीं क्यों, अब तक ये रिश्ता है बाकी।-
कभी तुम अकेले में देखना तारो को ,
जो कोई तारा तुम्हे देखकर टीम टिमटिमाया
समझ लेना वो मैं हूँ,
कभी तुम खामोश हो यूँ ही टहलना,
चली जो भीनी हवा तुमसे लिपटकर
समझ लेना वो मैं हूँ,
कभी तुम उदास होके अकेले खड़े हो,
उस पल जो आंसू गिरे तुम्हारे गालो को छूकर
समझ लेना वो मैं हूँ,
कभी तुम जो यूँ ही अकेले में सोच के कुछ मुस्कुराओ उस पल जो सुकून मिले तुम्हारे मन को
समझ लेना वो मैं हूँ..-
पहला कदम मिलाके, हम चले थे जनवरी में,
इश्क़ हुआ था गहरा, मोहब्बत की फरवरी में।
मार्च में खेल रहे थे, हम रंगों के संग होली,
बसंत भी आ गया था, बन अप्रैल में हमजोली।
हम दुनिया भुला रहे थे, वादे मई में करके,
जज़्बात सुलग रहे थे, जून की आग में जलके।
जुलाई हँस रही थी, इश्क़ के बैठ सिरहाने,
अगस्त ने चुटकी काटी, भ्रम में हैं दीवाने।
फिर जाने क्यों सितम्बर, मायूस हो रहा था,
कांटे दुःखों के शायद, अक्टूबर बो रहा था।
इक आहट दे गया फिर, तेरे जाने की नवंबर,
और बिछड़ गए आख़िर, तुम, मैं और दिसंबर।-
दरियाओं के पहलू में हमने उम्र गुज़ारी है
अब तलक डूबते रहना मुसलसल जारी है
इबादतों में शायद कभी दफ़न नहीं हुए
तुमसे इश्क़ हमारा हर सजदे पे भारी है
कुरेदो राख तो जल जाने का फ़ितूर लेकर
हमने साँसों में सहेजी तमाम चिंगारी है
हमें पढ़ने में मुमकिन है सुकून खो जाए
हमारी तहरीरों में हर्फ़-हर्फ़ रवाँ बेक़रारी है-
पूछा मैंने आईने से....
बता कैसी लगती हुँ?
निहार कर कूछ देर बोला...
मस्तिष्क पर रेखाएं नजर आ रही है,
पर इनमें फ़िक्र अपनों की है।
आँखों में काजल सजी नहीं,
नीचे डार्क सर्कल है,
अपनों के लिये तू ठीक से सोई नहीं है।
कानों में पहनी बाली नहीं,
पर अनकहा सुनने का हुनर आ गया है।
होंठों पे सजी लाली नहीं,
पर तेरे बोल में प्यार झलकता है।
नाखून टूटे बेरंग हैं,
पर हाथों मे स्वाद आ गया है।
पेट थोड़ी सी बाहर आ गए है,
यह खुद को समय ना देने का नतीजा है।
कमर तेरी कमसीन ना सही,
तूने झुकना सिख लिया है।
घुटनों में थोड़ा दर्द है,
पर घर में, दौड़ तेरी मेराथनों वाली है।
तू कल भी खूबसूरत थी,
आज भी हैं....
कल तू चंचल राधा थी,
आज लक्ष्मी हो गई है-
इस बार वेलेंटाइन वीक मनाने प्रयागराज चलोगे क्या ?
हां तुम! मेरे लिए उन करोड़ों में से एक बनोगे क्या ?
पहले दिन होगा Rose डे
गुलाब की पंखुड़ियों से,
हमारी कहानी का पहला पन्ना लिखोगे क्या?
दूसरे दिन होगा Propose डे
संगम के पावन जल में,
प्यार की पहली किरण जगमगाओगे क्या?
तीसरे दिन होगा Chocolate डे,
वहीं किसी ठेले पर चाय की चुस्किया लेते हुए दो शब्द मीठे बोलकर,चॉकलेट सी मिठास भर पाओगे क्या ?
चौथा दिन होगा टेडी बीयर डे,
रेतीली जमीन पर मेरे पैरों में कंकड़ चुभेंगे ,
तो मेरे पैरो को अपने हाथों से सहला पाओगे क्या?
पांचवे दिन होगा Promise डे,
प्रयागराज की पवित्र धरा पर
इस प्यार को अमर रखने का वादा कर पाओगे क्या?
छठे दिन होगा Hug डे,
करोड़ों की भीड़ में मुझे गले लगाकर सेफ रख पाओगे क्या ?
सातवें दिन होगा Kiss डे,
भीड़ देखकर घबरा जाने वाली मै, माथा मेरा चूम कर चेहरे पर मुस्कुराहट ला पाओगे क्या?
इस बार वेलेंटाइन पर उस करोड़ों की भीड़ में
तुम मेरे वो एक खास बन पाओगे क्या?-
मैं उसको प्यार करती हूँ
प्यार जिसे कहने को लफ्ज़ नहीं मिलते
उसे देखती हूँ जी भर के
जी भर के सुनती हूँ उसकी बातें
उसकी बातों में ढूंढ़ती हूँ बहाने
बहाने ये कहने को कि उससे प्यार है
प्यार जिसे कहने को लफ्ज़ नहीं मिलते
मैं झाँकती हूँ आँखों में उसकी
उसकी आँखों में एक गहरा समंदर है
समंदर जिसमें डूब जाती हूँ मैं
मैं उसको प्यार करती हूँ
प्यार जिसे कहने को लफ्ज़ नहीं मिलते..!!-
I love us.
Our little family we’ve built is everything. The weird and wonderful, the messy and beautiful—it’s all ours, and I wouldn’t trade it for the world.
I love the moments that make us laugh until our sides hurt, and the quiet ones where we just are. I love the chaos, the quirks, the inside jokes that only we understand. I love the love that fills every corner, even on the hard days.
We’re not perfect, but we’re us. And that’s more than enough.
This little family of ours is my greatest joy, my proudest accomplishment, and my whole heart walking around in the world. I love every bit of it—and I love us.-