पत्नी के मृत्यु के साथ ही
प्राण निकल जाते हैं पुरुषों के,
परन्तु वे चलते रहते हैं कुछ मास और!
आयु घटने लगती है,
पुरुषों की पत्नी की मृत्यु के बाद।
~अंशी श्रीवास्तव
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M js trying to express my feelings through the beautiful words ...❤✍
मेरा अपने प्रति विश्वास अटूट है,
जो बाँधे रखता मुझे स्वयं से अपेक्षाओं के बंधन में।
ऐसा नहीं है कि मैं गिरती नहीं,
परन्तु हाँ, मैं कभी ठहरती नहीं।
मेरा अन्तस् आवाज देकर मुझसे
हर बार एक ही बात कहता है,
'बस एक अन्तिम प्रयास।'
और अपने प्रति
उसका विश्वास देख
मैं उत्साह के साथ
उठ खड़ी हो जाती हूँ,
व पुन: चलने लगती हूँ उसी राह पर,
हर प्रयास को आखिरी मान कर।
~अंशी श्रीवास्तव-
मौन हूँ,
मैं कौन हूँ?
मैं चल पड़ी उनकी दिशा में,
दोपहर, तो कभी निशा में,
जो कह रहे सो कह रही,
मैं मृत बदन में रह रही,
जुबाँ पे रख प्रखर मैं अन्दर
मौन हूँ,
मैं कौन हूँ?
~अंशी श्रीवास्तव-
कोय कहीं नित प्रीत दिखावे,
कोय अश्रु संग बिरह मनावे।
कोय पी को बेहिचक ताके,
कोय दरश को भीतर झाँके।
~ अंशी श्रीवास्तव 🌼
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जब अपने किसी प्रिय व्यक्ति से
हम किसी भी हालत में बिछड़ना नहीं चाहते,
परन्तु हमारे भाग्य का प्रेम
हमारे प्रति सच्चा होता है,
तो वो खींच लेता है दूर हमें उन लोगों से,
जिनके दिए दुखों से,
दुखती रहती है हमारी अंतरात्मा जीवन पर्यंत।
~ अंशी श्रीवास्तव 🌼
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अपनी खामोशियाँ समेट रही हूँ कुछ दिनों से,
डरती हूँ बेवजह वो चिल्ला ना पड़ें।
~ अंशी श्रीवास्तव 🌼
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हिन्दी भाषा के प्रति लोगों का रुझान एवं प्रेम,
आज हिन्दी दिवस के दिन उभरकर नजर आ रहा है।
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सुन सखि मोहे छेड़ि सतावे,
इहि उहि डोल हृद अति भावे,
अवसर खोजे गाल छुवन का,
ए सखि साजन? ना सखि झुमका।
~ अंशी श्रीवास्तव 🌼
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वह बहती हुई किसी सुन्दर
स्त्री के समान प्रतीत हो रही थी,
वह स्त्री जिसे परवाह नहीं थी दिशाओं की,
वह पवन के प्रेम में लीन आँखे मूँदे,
उसी की दिशा में बह रही थी।
(अनुशीर्षक पढें)
~अंशी श्रीवास्तव-
मुस्कुराना शुरू किया जबसे,
किस्मत को घुटन-सी होती है।
~अंशी श्रीवास्तव 🌼-