ना कोई था, ना कोई है, ना कोई होगा
मेरा कल यही था, मेरा कल यही होगा
मेरे से चिपटे रहते है बीती रात के साये
सुबह हुई भी तो मेरे लिए क्या ही होगा-
कमीज़ पर दाग होंगे सबके ही,
कुछ इन्हें अपना लेते हैं, इश्क का रंग कह कर ।
और कुछ इन्हे मिटा देता है, अफ़सोस कह कर ।-
तुम ताक़त हो मेरी
हर कमज़ोर पल में
तुम हिम्मत हो मेरी
मुश्किलों के हल में
तुम तब भी हो जब कोई
साथ नहीं होता
तुम तभी भी होती हो
जब किसी को भी
मुझ पर ऐतबार नहीं होता
मै बिना सोचे समझे तुमको
सब कहता हूं
तुम बिना झुंझलाए सब सुनती हो
तुम कभी भी कुछ नहीं कहती
हां एक सच्चे जीवनसाथी सा
कोई दूसरा नहीं होता-
जिसकी खातिर जग से रिश्ता तोड़ लिया,
मुझे उस लड़की ने आज अकेला छोड़ दिया,
मैं पागल जो उसकी खातिर था पागल,
अब फिर से....
उसने दूजे संग अपना बंधन जोड़ लिया,-
Ashq mil kar ke gawahi de rahe the
Khwaab muddat se tere dar pe khade the
Khul gaya dar
Khwaab poore ho gaye
Itni khushi
Sab haste haste ro pade-
मुझे पढ़ ना पाए वो, यूँ तो ज़ेहानत कम ना थी उनमें
एक मुकम्मल क़िताब था जिसे वो अख़बार समझ बैठे
हाँ गुरूर उनकी ज़ेहानत का अब तोड़ना नहीं हमको
क्या ही बोलूँ उन्हें जो मंदिर को बाज़ार समझ बैठे-
इरादा तो नहीं था पर कर दिया हमनें
पहले समझाया फिर धर दिया हमनें
एक बार में मान जाता तो क्या बात थी
नहीं माना तो फिर से रगड़ दिया हमने-
Iss dil ko phir uska khayal aaya hai,
Bujhe charaagh ko dino baad jalaya hai.
Woh meri mohabbat ko samajh na saka,
Iss dil ko bas is baat pe rona aaya hai.
Aankhen band karke chala main kuch der,
Toh jaana andheron ne hi har baar sahi rasta dikhaya hai.
Logon ko pyaar ke badle pyaar mila hoga,
Humne toh pyaar mein sirf zeher khaya hai.
Dard-e-intehaan na poochhiye mujhse,
Shab-o-roz khud ko khud mein bujhaya hai.
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मैं ना जियूं तुम बिन ओ कान्हा
कोई काम नहीं मुझे भाता
नाम लूं तो सुकून मन को आता
बस ध्यान करूं दिन-रात तुम्हारा
सागर तुम में, नदिया की धारा
पैर पकड़ रात को सो जाता
रात-दिन तुम्हरे भजन गाता
दुनिया मतलबी, बस तुम्हारा सहारा
मेरा नहीं ये तन, ये तुम्हारा
कैसे जियूं तुम बिन ओ कान्हा
मुरली धुन सुने फिरता रहता
'कान्हा-कान्हा' बस कहता रहता
माखन तुम्हरे लिए हर रोज़ धरता
सांसों में बसा नाम तुम्हारा
मैं ना जियूं तुम बिन ओ कान्हा-
इक मोहब्बत हुई जो कि बदनाम थी,
ये मोहब्बत थी ऐसी जो कि नाकाम थी।
तन्हा नहीं थी, परेशान थी,
ये बात मेरी सर-ए-आम थी।
बहुत कुछ सिखाती है ऐसी मोहब्बत,
क्या तुमको बनाती है ऐसी मोहब्बत?
सबक याद रख कर के चाहत भुला दें,
आओ तुम्हें हम मोहब्बत सिखा दें।-