उमड़ आया है तुमपे प्यार इस बार होली में,
गले मुझको लगा लो ऐ मेरे दिलदार होली में,
कई अरसे से तेरा इश्क़ पाने को मैं तरसा हूं,
बुझा दो दिल्लगी की आग इस बार होली में।-
फिराक़ साहब की जन्मभूमि, कर्मभूमि "गोरखपुर" में जन्... read more
जब किसी की याद आती है मयख़ाने में,
लोग गमों को घोल के पी लेते हैं पैमाने में,
प्यास काँटों की बुझाए जो लहू से अपने,
लोग ऐसे कहाॅं मिलते हैं अब ज़माने में,
बे-सबब बदल जाएगा मिज़ाज मौसम का,
कुछ भले लोग चले आए अगर मयख़ाने में,
लोग मार रहे थे भरे बाजार में पत्थर उसको,
झलक मजनू की दिख रही थी उस दीवाने में,
किसी शायर की बद्दुआ लगी है मुझको 'देव',
दिल न अब शहर में लगता है न वीराने में।-
कुछ इस कदर याद किया था उन्हें ख़्वाब में,
कि ख़ुद आ गए हैं वो मेरे ख़त के जवाब में।-
'देव' की ग़ज़ले हिज़्र में भली लगती हैं,
गुनगुनाओ 'मीर' के नगमे अभी इश्क़ मे हूं मैं।-
मिटा देंगे गिले शिकवें इस बार होली में,
लगा लेंगे गले सबको इस बार होली में,
तेरे होंठो को छूने की थी हसरत एक अरसे से,
पूरी होगी मेरी ख्वाहिश इस बार होली में,
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मिलता था वो बिछड़ जाने की नियत से,
बस यही मसअला ताउम्र मेरे साथ रहा। — % &-
वो लोग जो मौसम-ए-सर्द को बेईमान बताते हैं,
और कुछ नहीं बस अपने महबूब का ईमान बताते हैं।-
कि देखा हैं ऐसा मंज़र यार दिसंबर में,
सिमट आता है पूरा साल दिसंबर में,
जिस गुमान में फिरता रहा ताउम्र मैं,
हार गया वो बाज़ी मैं यार दिसंबर में,
ये कैसा सफ़र हैं खत्म ही नहीं होता,
लौट आऊंगा गाँव इस बार दिसंबर में,
इरादा किया था कि तुझे भुल जाऊंगा,
पर तू आ गया याद इस बार दिसंबर में,
लोग गुनगुना रहे थे दर्द-ए-बयां अपना,
और मैं रो पड़ा इस बार दिसंबर में।-
इश्क़ के नाम से लोगों में दहशत नहीं होती,
शायद हिज़्र की रात में पहले सी वहशत नहीं होती।-