सुकून-ए-दिल कभी हासिल ना हुआ ,
तमाम ज़िन्दगी रास्तों के सफर में कट गई ,
और पस-ए-मर्ग हम फिर दरियों के सफर में रहे ,
रूह जो बेकरार थी सो अज़ल तक फिर बेकरार ही रही ,
जो मिला उससे मुतमईन न हुए जो न था उसकी आरजू रही ,
बहुत ढूँढ़ा लेकिन मगर फिर भी सुकून-ए-दिल कभी हासिल ना हुआ .
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