अब बदलो के आने की खुशी बची नहीं है
बारिश की तरह अब आंखों में नमी नहीं है
बेरंग,खाली आस्मां सा दिल हो गया है हमारा
खालिस जिंदगी का सुकून अब बचा नहीं है-
रह जाती है कुछ ख्वाहिश अधूरी हर कब्र की
जो सपने बुने थे दुनिया फतह करने के।।
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आंखों को भरके,
हार को स्वीकारते
झकझोर के मन को
श्मशान की ओर देखते
चांदनी के शीतलता अहसास लिए
खाली हो जाना थोड़ा
स्थिरता को अपना कर
शिथिलता का अनुभव लिए
जहां प्रेम ,घृणा ,अहंकार और
तृष्णा का संकुचन चरम पर होगा
और विजय की महिमा शून्य
तब आगाज होगा नए सुबह की
जहां तुम, तुम्हारा फटा लिबाज
बेहूदे नहीं लगेंगे।
और तुम्हारे हर एक कदम
मील के पत्थर साबित होंगे।
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इस मन के पहरेदार को मनाऊं कैसे
तेरे दिल के हंसी जाम को भुलाऊं कैसे
हुआ है इश्क हमको रफ्ता रफ्ता ये सनम
उस आगाज आशिक़ी को अब निभाऊं कैसे-
तेरे होने की खबरें अब आम हो गई
और जो आम हो गई तो सरेआम हो गई
वो रौनकें जो डेरा डाली थी तेरी मशहूरी में
बे कदरी करते करते गुमनाम हो गई।-
उनके कंधे पर रखे सिर और उनके छुवन के अहसास
से भरा मैं, ख़ुशी से जनाजे का अहम हो सकता हूं।।-
जब साथ ना दे तुम्हारा ये वक्त
तो भींच लो मुठ्ठी, भर लो आसमान की गर्माहट
उस हर एक प्रयास के लिए
जिसमें तुम खुद सवाल बन गए हो
और एक दिन अंतिम छलांग,
जिसमें ये वक्त साथ न देते हुए
नतमस्तक हो।-
जो नजीर बन रहा था शहर के कोने कोने में
वो रोटियों की तलाश में गुमनाम हो गया।-
कहना नहीं था वो ख़्वाब की बाते
जो समेटे हुए थे सितारे जमी पर
जो बिखरे सन्नाटे में , बिछड़े महक को
जोड़ लेते थे अपनी मधुर आवाज और प्रेम से
उन्ही ख़्वाब एहसाह को यूं कहना नहीं था
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तड़प नही थी वादा था
खुद से खुद को मिलने की
जहां की जरूरत से उबरने की
जिंदगी से कदम मिलाने की
हर बाधाओं को तोड़ने की
आसमान की ओर चलते जाने की
आलिंगन की पराकाष्ठा पर जाने की
विचारो की तलाश और मजबूती की
तड़प नही थी वादा था खुद से।।
....अद्वितीय अनूप-