खेतो में जिसने बंदूके बोई
अंग्रेजी हुकूमत भी जिसके खौफ से से रोई
एक ही था वो मां का लाल
उसकी तरह अमर होगा न दूजा कोई-
क्योंकि मेरी जिंदगी के तजुर्बे तगड़े है
कर सकूं खुद शब्दो में बयां इतनी मेरी हैसियत ही नहीं
मिल जाए काश कोई हमे भी ऐसा जो पूछे सब खैरियत हैं की नहीं-
लड़ते लड़ते बिछड़ने की बात करते थे
आज जब बिछड़ गए तो लड़ना याद आता हैं-
एक अरसा सा बीत गया कलम उठाए
हाल क्या है अपना ये किसको बताए
खामोशी भी बहुत कुछ बयां करती हैं
पर अफसोस हैं ही जी कोई जो ये समझ भी पाए
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वो भी कभी गांव थे जो आज शहर हो गये
बदलते वक्त के साथ अपनी पहचान खो गये
हरी भरी फसलें लहलहाती थी जिन खेत खलिहानों में
आज वहां चार दीवारी में कैद घर अलीशान हो गये-
चूड़ियों का मेरी अपमान ना कर बाजुओं में मेरे भी दम है
मौका मिला है तो बतलाया भी है हमने
हम में सरकार को हिलाने का भी दम है
घर से निकल कर आज हम सड़कों पर है
इंच पीछे नहीं हटने वाले आज सामने हमारे घुटनों पर है
करते हो सम्मान हमारा तो बात हमारी भी सुनो
वरना नारी शक्ति है हम असुरो का अंत करने तक का दम है
है नहीं ऐसा कोई क्षेत्र जहा वर्चस्व हमारा कम है
हम ही लक्ष्मी बाई है, हम ही मा काली भी है
हम अपनी बातों से नहीं
कामों से तुम्हारे सम कक्ष है
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