Anonymous Avery   (Avery)
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Joined 26 June 2020


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Joined 26 June 2020
26 APR AT 10:47

कसूर तो मेरा ही था‌
जो हमने जरूरतों को इश्क़ समझ लिया
हसरतों को जब पूरा ना‌ कर सका
लोगों ने हमको वेबफा तक कह दिया
भूल गए वो इस कदर नाम मेरा
जो करते थे वादा सपनों में मिलने का।

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21 MAR AT 17:11

ठहरो तो तुम थोड़ा
गर्म चाय संग
चटखारे लो खबरों का
क़ातिल हो कोई
होता क़त्ल तो मानवता का
बांट कर खुद को
हाथ की अंगुलियों-सा
भूल बैठे वजूद हम खुद-का
ओढ़ झूठ‌,‌ फरेब और ढोंग का चोला
हमने सच को न पहचाना
है कर्तव्य क्या अपना
हमने न जाना
खिलेगी हमारी बगिया
जब बहेगी खून की नदियां।

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15 MAR AT 21:00

क्यों उदास हो तुम थोड़ी
क्यों है छाई लबों पे खामोशी
माना दुख जाता है दिल लोगों का
हो जाती जब बातें थोड़ी कड़वी
जाने मन मेरा
आती नहीं तुम्हें
बातें करनी मीठी मीठी
दुख जाता जो दिल किसी का‌ तुमसे
आंखों में भर आता तेरे पानी
ठहराकर खुद को गलत
अंदर ही अंदर तुम तो घुटती
खुद को बदलने की
लाख कोशिश तुम हो करती
एक बात है तुमसे कहनी
मुझको तो बातें तेरी
चाशनी में डूबी
जलेबी है लगती
ना बदलना तुम खुद को
धड़कन हो तुम मेरे दिल की
जब भी आए गुस्सा तुमको
कागज पर लिखना बातें दिल की
कुछ बातें हो जाएंगी हवा में गुम
तभी ना हो मन शांत तुम्हारा
आईने से तुम कहना‌ बातें दिल की
माना दिल कभी दुख जाए किसी का‌
हाथ थाम कर तुम बस कहना
लफ्जों से‌ ही क्या अस्तित्व है मेरा
आंखों में नहीं
प्यार है दिखता।

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11 MAR AT 18:20

जो जैसा है
उसको तुम वैसी दिखती हो
क्या ग़लती है उन लोगों की
जो खुद जहर की शीशी हो।

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6 MAR AT 22:11

यूं तो कमी नहीं है ज़माने में मयखानो‌ की
पर दिल को तलब है तेरे हुस्न के प्यालों की।

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25 FEB AT 13:03

ये द्वंद्व है खुद का खुद से
कभी सत्य कभी मिथ्या के अंश से
सही और गलत विचारों से परे
आते हैं क्यों विचार पूछता मैं अपने मन से
है जब चाहत निष्काम की
फिर क्यों मैं करता यह कामना अपने रब से।

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12 FEB AT 15:34

कल‌ तक मां से हर बात पर लड़ने वाला
आज उनको सही मानने लगा है
था जो कभी खुद बच्चा
सुना है वो इक बच्चे का पिता है।

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8 FEB AT 8:40

मेरे हर सुबह का पहला ख्याल हो तुम
मेरी रातों का अधूरा ख्वाब हो तुम
कभी सूरज कभी चांद
कभी बादलों भरी शाम हो तुम
कभी कहकशाॅं
कभी जुगनूओ भरा आसमान हो तुम
कभी ना मिटने वाली प्यास हो तुम
कभी पूर्णता का एहसास हो तुम
कभी मेरा अक्स
कभी मेरा गुमान हो तुम
कभी हो उलझन मेरी
कभी हर सवाल का जबाव हो तुम
कभी ना पूरी होने वाली वो फरियाद हो तुम
कभी ना धुंधली होने वाली इक मीठी याद हो तुम
कभी ना समझ सके जिसको कोई वो बात हो तुम
पर मेरे दिल का इज़्तिराब हो तुम।

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26 JAN AT 12:33

है हम‌ देशभक्त
करते देशभक्ति
खाते आज हम गर्म जलेबी
होती बातें चाशनी में डूबी
फहराते राष्ट्र ध्वज
लहराती गुब्बारे संग डोरी
पहनते सफेद कुर्ता
साथ रहती गांधी टोपी
गा लेते चंद गीत
होती जिनमें हल्की अंग्रेजी
ठंड में ठिठुर जाती
हमारी हिम्मत थोड़ी - थोड़ी
भेज संदेश खुशी के
बन जाते हम देशप्रेमी।
P.s. ये किसी व्यक्ति, जाति विशेष की‌‌ आलोचना नहीं अपितु सबकी है‌।
मैं, आप , तुम से कहीं अधिक ये हम सब की मूल समस्या है।
ये जो हमारा देश प्रेम है वो किसी खास दिन ही क्यों बाहर आता है।
मुझे तो ये काफी खटकता है।
क्या आपके मन में भी ये विचार कौंधता है?
कमेंट सेक्शन में अपनी बात साझा करें।
गणतंत्र दिवस की आप सब को हार्दिक शुभकामनाएं।
जय हिन्द।

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23 JAN AT 15:38

थोड़ी-सी चिंगारी काफी नहीं
जलाने को गुलिस्तां मेरा
जिसने जल कर
खुद का अक्स है बनाया।‌

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