दरख्तो से तिरा अश्क झलकता है
इन लबों में आब आ जाती है।
दो घूंट पिया नहीं था जाम का अभी
तिरी यादों से भरी शाम आ जाती है।-
बदनाम हो गए....
मिरे हर्फों में जिक्र न हो तिरा कैसे हो सकता है
बड़ी तवक़्क़ो से ये अश्क तिरे फिराक में सो जाते हैं।
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इन हाथों की करामातों से तंग आ जाती हूँ,
लिखने कुछ और बैठती हूँ, नाम तेरा लिख आती हूं-
मेरे मन में तुम्हारे उस प्रेम की छवि
इस प्रकार बनी है,
जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर पाउंगी,
मग़र ऐसा भी नहीं है कि
मैं उसे खुद से जुदा नहीं कर पाऊंगी।
बेहिसाब उठता है सैलाब मन में उस प्रेम का,
जिसे मैं,तुम्हें दिखा नहीं पाऊंगी।
अंदर-ही-अंदर तड़पता है हृदय,
मग़र उसका दोष ,मैं तुम्हें दे नहीं पाऊंगी।
ढलते है दिन,ढ़ल जाती हैं रातें,
मग़र तुम्हारे हृदय भेदी शब्दों को भुला नहीं पाउंगी।
ख़ुद से नाराज़गी इस बात की रहेगी कि,
कभी तुम्हारे जैसी मैं बन नहीं पाऊंगी।
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.. खिज़ा में जो बहार ला दे ऐसा इश्क़ हैे बेपनाह आपसे।,
खुदा ने भी जिसे कुबूल किया ऐसा मर्ज है आपसे।
खतों में लिखा करते है पैग़ाम तेरे नाम के,
छोड़ेंगे न हाथ ओ साथी मरते दम तक ऐसा कौल है आपसे।-
खौफ है उसे जो हो नहीं सकता,
जो जी चुका है जिंदगी पहले,वो अभी मर नहीं सकता।
दलहते दिलों में झाँक कर देखो शायद कही मिल जाये,
हँसते खिलखिलाते हुए अपनो के बीच,क्योंकि अब वो मिल नहीं सकता।
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सुना है आज कल उनका दर खाली रहता है,
तभी तो उनकी महफ़िल में झूठों की बारिश होती है-
आंखों में सपने लिए शहर-दर-शहर बदलते गए,
रेत की तरह रिश्ते भी हाथों से फिसलते गए।-
तू वो चांद है,
जिसे मैं पाना नहीं चाहती।
मगर तुझे देखने का,
एक भी मौका गवाना नहीं चाहती।-
ख्वाहिश है तुम्हें चाहने की,
दूर से ही देखने की..
पास आकर अक्सर लोग
जुदा हो जाते हैं...-