विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण का मानव मात्र से एक निवेदन...
हे मानव !
हरे भरे आँचल को मेरे
नितप्रति तुमने जीर्ण किया
प्राण वायु को तुमने ही
प्रतिपल विदीर्ण किया
मेरे गहन अरण्यों को
तुमने वृक्ष विहीन किया
मैं नभ हूँ मैं घन हूँ
मैं संपदा मैं ही धन हूँ
मैं सूरज मैं ही जल हूँ
मैं श्वास मैं ही जीवन हूँ
हृदय तुम मैं स्पंदन हूँ
मैं आज और मैं ही कल हूँ
मैं अक्षुण्ण हूँ मैं अटल हूँ
मेरे होने से तेरा होना तय है
वरना ...निःसंदेह प्रलय है ।
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