25/01/24******गुरुवार
नगर अयोध्या खिल उठा, लौटे राजा राम।
बाल प्रतिष्ठित रूप में, वंदन आठों याम।।
नयना भर- भर आ रहे, छवि लखि बारम्बार।
रोम- रोम पुलकित सकल, अपलक रही निहार।।
रोम- रोम में बस रहे, मेरे रघुवर राम।
राम लला का दर्श यह, अद्भुत अरु सुखधाम।।
पुलकित नर नारी सकल, राघवमय संसार।
पञ्च शतक के बाद में, आए करुणाधार ।।
दशरथ अरु सब रानियाँ, बैठे बाँह पसार।
लेत बलैया मातु हैं, राजन मुक्ता वार।।
राम - राम उद्घोष से, गुंजित यह संसार।
ऐसा अद्भुत दृश्य यह, देखा पहली बार।।
'आर्या ' तन मन वारती, प्रेम रतन आधार।
चरण शरण में लीजिए, चाहूँ यह उपहार।।
-