“मैं भी हुआ करता था वकील इश्क वालों का कभी….
नज़रें उस से क्या मिलीं आज खुद कटघरे में हूँ….”-
अब बस खुद का सुनने को मन करता हैं, लोगों की सुन सुन कर थक चुका हूं |
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शब्द मुफ्त में मिलते है लेकिन उनके चयन पर निर्भर करता है
कि उसकी कीमत मिलेगी या चुकानी पड़ेगी-
पत्थर में एक ही कमी है कि वो कुछ भी करों, पिघलता नहीं है….!
लेकिन उसकी खूबी है कि वो कभी बदलता भी नहीं है!!-
जब तक साँस है, टकराव मिलता रहेगा जब तक रिश्ते है, घाव मिलता रहेगा |
पीठ पीछे जो बोलते हैं, उन्हे पीछे ही रहने दे ,,रास्ता सही है तो गैरों से भी लगाव मिलता रहेगा|-
कोयल अपनी भाषा बोलती है, इसलिये आज़ाद रहती हैं.
किंतु तोता दूसरे कि भाषा बोलता है इसलिए पिंजरे में जीवन भर गुलाम रहता है
अपनी भाषा, अपने विचार और “अपने आप” पर विश्वास करें-
बस इतनी सी बात समंदर को खल गई !
एक काग़ज़ की नाव मुझपे कैसे चल गई !-
सवेरा उनके लिए नहीं होता …जो जिन्दगी मे कुछ भी पाने की उम्मीद छोड चुके है..
उजाला तो उनका होता है….जो बार बार हारने के बाद कुछ पाने की उम्मीद रखे है…!-
अगर तुम्हे नीद नहीं आ रही, तो उठो और कुछ करो, बजाय लेटे रहने और चिंता करने के नीद की कमी नहीं, चिंता तुम्हे नुकसान पहुंचाती है।
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