हम मिलेंगे कहीं किसी समानान्तर ब्रह्माण्ड में,
जहाँ विज्ञान एवं प्रेम दोनों के ही नियम भिन्न होंगे,
समय प्रेम के क्षणों में मन्द एवं क्रोध में तीव्र गति से चलता होगा,
जहाँ गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की अपेक्षा प्रेयसी के चक्षुओं में अधिक होगा,
जहाँ दो प्रेमियों के मध्य का तापमान ब्रह्माण्ड में सर्वाधिक होगा,
प्रेम की स्वयं एक जाति होगी और कोई भी हो यदि वह प्रेम में है तो उसकी जाति केवल प्रेम होगी, जहाँ प्रेमियों को देखने मात्र से व्यक्ति प्रेम से संक्रमित हो जाता होगा, नहीं होगी जहाँ कोई विरह-कथा, कवियों की लेखनी केवल प्रेम और मिलन के गीत रचती होगी, जहाँ विज्ञान एवं कला के सभी विषयों में केवल प्रेम का परीक्षण होगा और प्रेमी प्रत्येक परीक्षा में शत प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण होगा, जहाँ प्रेम में विलोम की अवधारणा नहीं वस्तुत: केवल पर्यायवाची होंगे, सूर्य जहाँ प्रेमियों की इच्छा पर उदय होता होगा, जहाँ प्रेयसी से मिलने जाते प्रेमी की गति प्रकाश की गति से तीव्र होगी, जहाँ विज्ञान एवं समाज दोनों पूर्णतः प्रेम के नियमों में बंधकर उसकी सत्ता स्वीकार करते होंगे,
हाँ हम मिलेंगे हाथ में हाथ लिए कहीं किसी समानान्तर ब्रह्माण्ड में जहाँ विज्ञान एवं प्रेम दोनों के ही नियम भिन्न होंगे।
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