Anmol   (Anmol ©अजान)
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अमावस की काली रात में, मैं रौशनी की जंग हूँ!
Joined 9 September 2017


अमावस की काली रात में, मैं रौशनी की जंग हूँ!
Joined 9 September 2017
3 AUG 2021 AT 12:39

मैंने सजा रखी हैं अपने ख़्वाबों की चिता
और बैठा एकटक निहार रहा हूँ शून्य को।
मेरा भविष्य कर रहा है क्रंदन इस हार पर
और मैं मुस्कुरा रहा हूँ अपने शोक पर।
इस तरह मैंने जाना कि, विक्षिप्त होने से पहले
मन की मृत्यु आवश्यक है।

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17 JUL 2021 AT 22:56

लोग मेरे पीछे के सब मुझसे आगे हो गए
मैं अकेला कारवाँ को ही बनाता रह गया

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2 JUN 2021 AT 22:43

मैं लिखता हूँ फिर जीता हूँ,
लिख लिख कर जीता हूँ।
थोड़ा रुकता हूँ, फिर चलता हूँ,
मैं रुक रुक कर चलता हूँ।
मैं कारवां ले कर निकला था
रुकते रुकते, पीछे मैं रह गया
मंज़िल के आस में अब
मैं चलता हूँ।
देखे हैं मैंने कुछ स्वप्न
टूट न जाएँ वो, इस भय में
मैं आँखें मूँद कर चलता हूँ
चलते रहना ही तो जीवन है
कल मैं भी मर जाऊँगा,
इस डर से आज मैं चलता हूँ।

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1 MAY 2019 AT 23:06

तुम पूछते हो, मेरी जाँ की मियाद क्या है
तुम ही बताओ, तुम्हें हमसे फ़रियाद क्या है?

क़सीदे जो पढ़ रहे तुम अपनी कामयाबी के,
ज़रा ये तो बताओ, तुम्हें बाकी याद क्या है?

मेरा भगवा और तुम पहनोगे हरा!
अरे! ये तो बताओ, ये रंगों का फ़साद क्या है?

कीमत सही हो तो बिक जाते हैं भगवान यहाँ,
ऐ इंसां! बताओ, तुम्हारे ज़मीर की बुनियाद क्या है?

हो सौदा जो बुलबुल का, हाथों से बागबां के,
तो गिला बुलबुल का तुझसे सय्याद क्या है?

यूँ हो जाओगे क़ैद अपने ही माज़ी में "अजान"
ये तो बताओ, उस नई जिंदगी की ईजाद क्या है?

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22 MAR 2019 AT 20:21

तेजस की मैं उड़ान हूँ,
गणतंत्र की मैं पहचान हूँ।
कूटनीति का मैं प्रमाण हूँ।
हाँ! मैं बिहार हूँ।

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13 JAN 2019 AT 0:58

आदि हूँ मैं, अंत हूँ।
अंतरिक्ष सा अनंत हूँ।
ठगों की भी बस्ती में,
मैं जैसे कोई संत हूँ।
सूर्य सी तपिश है मेरी,
चाँद सा मैं नम्र हूँ।
तुम्हारे हर एक सवाल का,
मैं जैसे कोई व्यंग्य हूँ।

आवारा एक बादल की तरह,
हाथी सा मदमस्त हूँ।
पहाड़ कोई सामने,
तो चींटी का प्रयत्न हूँ।
अपने कर्मक्षेत्र में,
सिंह सा प्रशस्त हूँ।

अमावस की काली रात में,
मैं रौशनी की जंग हूँ।
अमृत के संसर्ग में,
हलाहल का मैं प्रबंध हूँ।

आदि हूँ मैं, अंत हूँ।
अंतरिक्ष सा अनंत हूँ।

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25 DEC 2018 AT 19:45

हर सफ़र के अंत से एक नए सफ़र को बढ़ जाना,
मंज़िल की तलाश में रास्तों को घर कर जाना।

एक मुसाफ़िर का, यायावर हो जाना इतना भी आसाँ नही!

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12 DEC 2018 AT 19:53

सौ चेहरों को गढ़, एक किरदार जीता हूँ!
आईने के सामने भी असरदार जीता हूँ।

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15 AUG 2018 AT 19:02

न हरे में हिन्दू, न केसरिया में मुसलमान चाहिए,
एक तिरंगे के नीचे सारा हिन्दुस्तान चाहिए।

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1 MAY 2021 AT 23:24

अब हमारी हर एक तकरार पर मुझे फ़ैज़ याद आते हैं,
और फ़ैज़ वो बात कह देते हैं, जिसे कहने की हिम्मत,
मुझमें नहीं है।
(पूरा अनुशीर्षक में पढ़े)

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