Anmol chaudhary   (अनमोल चौधरी...✍️)
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Joined 23 July 2018


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Joined 23 July 2018
15 JAN 2023 AT 23:29

कोई किस्सा कहानी नहीं है ये, शहादत की बात है
हमें करनी है जो तुमसे वो मुहब्बत की बात है...
उस शख़्स को खुदा मानना कोई गलत बात नहीं
मन साफ हो तो इश्क़ भी इबादत की बात है...

मसला मुहब्बत का नहीं, मसला सारा यही है कि
प्यार व्यार कुछ नहीं, सब आदत की बात है...

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27 JUN 2022 AT 10:31

मौन हो रहा हूँ अब मैं
ज़िंदगी शोर करे जा रही है
इक चिड़िया है और इक दाना भी है
फिर क्यूँ आखिर ये मरे जा रही है

सपनों की ख़ातिर सोये जा रही है
बंस जंग खुद से लड़े जा रही है
चाहतें कहाँ खत्म होती हैं
बस ऐसे ही साँसें चले जा रही हैं

जीते थे जब हम रुलाती थी दुनिया
मरने पे दुनिया रोये जा रही है

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24 JUN 2022 AT 15:38

ज़ख्मों पर मरहम लगाना छोड़ दिया है मैनें
हर बात को दिल पर लगाना छोड़ दिया है मैनें
हाँ इंतज़ार तो रहता है बड़ी शिद्दत से उनकी काॅल का
पर खुद से उनको फोन लगाना छोड़ दिया है मैनें

उनके दीदार को तरसती हैं निगाहें हर रोज़ लेकिन
उनके शहर की ओर जाना छोड़ दिया है मैनें
सभी से मिलता हूँ अब मैं, सभी से हाथ मिलाता हूँ
लेकिन किसी से दिल लगाना छोड़ दिया है मैनें

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24 JUN 2022 AT 14:59

तुम पानी में भेज रहे थे
तुमने जाल बिछाया था क्या
मुझसे तो सब पूछ लिया था
तुमने कुछ छिपाया था क्या
मैं तो सारी मन की बातें
तुमसे साझा करता था
सारे सुख दुःख, सारी बातें
तुमसे बांटा करता था
तुम्हारे दर्द को अपना समझा
अपना दर्द भी भूल गया
आखिर में इक बात कहूंगा
दिल मेरा भी टूट गया

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26 MAY 2022 AT 16:21

तेरे शहर में हर कोई अंजान लगा मुझे
तू खुद कुछ दिनों का महमान लगा मुझे
चर्चा हो रही थी जिसकी हर गली हर मोड़ पर
वो शख्स हद से ज्यादा बदनाम लगा मुझे

और जिसकी आवाज़ पर "अनमोल"
तू भागा चला जाता था
वो दोस्त भी आज बड़ा बेईमान लगा मुझे

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5 MAY 2022 AT 10:51

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4 MAY 2022 AT 12:25

हर दिन जाने क्यूँ बेचैनी में गुज़र रहा है
एक शख्स है जो अपनी बातों से मुकर रहा है
एक परिंदा जो कैद था ना जाने कबसे पिंजरे में
तोड़ कर जंज़ीरों को वो पिंजरे से निकल रहा है

गर्मियों के मौसम में ये ठंण्डी हवा का झोंका कैसा
उनके आने से देखो शहर का मौसम बदल रहा है
उनके आने की ख़ुशी में हम संवरे थे बहुत लेकिन
एक वो है के हर रोज़ ही महफिलें बदल रहा है

तुम नादान हो "अनमोल" तुम कहां कुछ समझते हो
तुम बैठे रहो यहीं और वो ठिकाने बदल रहा है

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18 APR 2022 AT 15:21

सब अन्दर ही रखता हूँ मुझे दुःख बांटना नहीं आया
रात काट लेता हूँ लेकिन दिन काटना नहीं आया
लोगों को परखने में कुछ ज्यादा ही कमजोर रहा मैं
सब अपने ही लगते हैं मुझे गैर छांटना नहीं आया

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29 MAR 2022 AT 14:00

हम खुशी से काट लेंगे
गम की आँधी दी है तूने
हम गमों से खुशियां छांट लेंगे
हाँ जख़्म भी तूने दिये बहुत हैं
अब तुझसे गिला भी क्या करना
सारे सुख दुःख सारे शिकवे
खुद ही खुद से बांट लेंगे

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25 MAR 2022 AT 16:00

कुछ अजनबी मिले हैं
जो अपनो से ज़्यादा अपने हैं

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