फलक पर देखूं या जमीं पर देखूं,
आज हर जगह नजारा नूर का होगा!
जाने वो चांद कैसे संभालेगा खुद को,
जब उसे दीदार मेरे हुजूर का होगा!
दुआ करेगी अपने सुहाग की सलामती की,
आज मसला सारा मांग के सिंदूर का होगा!
ये चांद तारे कैसे संभालेंगे खुद को,
जब इनको दीदार कोहिनूर का होगा!
गुलाब को कमल का दर्जा दे दिया,
इसमें पक्का कसूर कसूर का होगा!
गरूर को बड़ा गरूर था खुद पर,
आज नशा चूर चूर गरूर का होगा!
चांद तुझे मुकाबले में मिठाई मुबारक,
तेरे लिए भी लड्डू मोतीचूर का होगा!-
मैं शब्द नहीं जज़्बात हूं!
पढ़ना सलीके से मुझे
मैं राज़ की कोई बात... read more
मत पूछो किस हाल में हूँ मैं,
बड़े ही बेहाल से हाल में हूँ मैं!
तुम तो जबाबों में ढूंढ रहे हो,
असल में तो सवाल में हूँ मैं!
सुर्खियां बटोर रहे मेरे नाम पर,
कुछ इस तरह बवाल में हूँ मैं!
ये चकाचौंध मनमोहक लगती है,
जकड़ा मायावी जाल में हूँ मैं!
एक रंग की तारीफ़ की थी उसने,
इसलिए दिखता रंग लाल में हूँ मैं!
जीने की कशमकश में काट रहा हूँ,
जिंदगी तेरे इस मलाल में हूँ मैं!
क़लम के सहारे से नाम बनाना है,
आज-कल इसी ख्याल में हूँ मैं!-
बस इतनी सी मेरी कहानी है,
मेरा एक रिश्ता खानदानी है!
गर्व और पहचान है जो मेरी,
वो हिंदी ही मेरी जुबानी है!!-
ख्वाबों की दुनिया का मकान ढूंढ रहा हूं,
मैं अपने जैसा ही एक इंसान ढूंढ रहा हूं।-
जैसे-जैसे पास हम आते गए,
हम खुद का ही वजूद भुलाते गए।
हम देते रहे सबको तवज्जो खुब,
हमारी बारी में तवज्जो भुलाते गए।-
ज़िन्दगी की उलझनें लिखता हूं कैसा कथाकार हूं मैं,
लिखता हूं अधूरे किस्से ऐसा कैसा कलमकार हूं मैं!
लोगों की लिखता हूं खुद की कोई मुक्कमल ना हुई,
देखो कहानी के दौर में ऐसा कैसा कहानीकार हूं मैं!
अपनी उपज का जो बोता हूं वो सबको खिलाता हूं,
खुद पेट भर ना खाता हूं ऐसा कैसा काश्तकार हूं मैं!
पर्दे की जिंदगी में बड़ा हंसता-खेलता रहता हूं मैं,
असल में आंसू बहाता हूं ऐसा कैसा कलाकार हुं मैं!-
मेरे यार तुझको ऐसा मैं क्या तोहफा दूं,
फिर याद आया खुद को ही मैं इक धोखा दूं!
जो पत्थर तुम मुझ पर फेंकते आए हो,
उनसे आशियां बनाने का तुमको मैं मौका दूं!
बहुत जिया तकदीरों की लिखाई पर अब तक,
अब बस हाथों की लकीरों को इक नई रेखा दूं!
जितने दिन गुजरे बड़े नागवार ही गुजरे अब तक,
अब कुछ कर गुजरने का ख़ुद को पक्का इरादा दूं!
लिखा,पढ़ा,समझा और दोहराया बहुत अब तक
'अंकुश' अब तेरी लिखावट को इक सलीका दूं!-
राख में मिल चुका वो ख़ाकसार हूं मैं,
मत पूछो मुझे किस कद्र नाराज हूं मैं!
जो दब गई है बोलते-बोलते ही कहीं,
ऐसी दबी हुई ही कोई आवाज हूं मैं!
जो भूलते गए सब वक़्त के साथ साथ,
किसी को याद ना आने वाला रिवाज़ हूं मैं!
जो शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गया,
तुम ही बताओ ऐसा कैसा आगाज हूं मैं!
जिसका संगीत गीत के बोल से नहीं मिलता,
ऐसा कैसा बेसुरा सा कोई साज हूं मैं!
'अंकुश' जो आए दिन खाता रहता है धोखे,
फिर लोग क्यों कहते है कि धोखेबाज हूं मैं!-
लिखने को बहुत कुछ हो लेकिन जब लिखा ना जाए,
उस वक्त कोन सी कुंदी बजाए इक शायर कहां जाए?
दो हिस्सों में बांट दिया खुद को किसे अपना दर्द बताएं,
इक चौखट दिया जलाएं या दूजी चौखट मत्था टेक आए?
महफिलों की रौनक में अब चार चांद कैसे लगाएं,
बेचारा तन्हा ही जाए और तन्हा ही लौट आए!-
कभी दुखी कभी बेचैन करती है,
ज़िंदगी तू भी बड़ा हैरान करती है!
कहीं सपने मोड़ती कहीं सपने तोड़ती,
ज़िंदगी तू भी बड़ा परेशान करती है!
शहंशाह भी तुझसे भीख मांगता है,
ज़िंदगी तू भी बड़ा वीरान करती है!
इक सांस भी ज्यादा ना देती इंसा को,
ज़िंदगी तू भी बड़ा गुमान करती है!
'अंकुश' को गलत-सही समझाती,
जिंदगी तू भी बड़ा एहसान करती है!
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