Ankush Sharma   (Ankush)
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Ruthe hote to Mana liya hota , Jo zid karke baitha hai usse kaise manate.
Joined 29 July 2018


Ruthe hote to Mana liya hota , Jo zid karke baitha hai usse kaise manate.
Joined 29 July 2018
7 FEB AT 17:39

A velvet touch, a crimson hue,
A rose unfolds, my love, for you.
Each petal whispers secrets old,
Of feelings cherished, brave and bold.
From bud to bloom, a fragrant art,
A symbol of my beating heart.
No perfect words can e'er express,
The depth of love, my happiness.
Like morning dew, on petals bright,
My adoration shines its light.
Through sunlit days and starry nights,
My love for you forever ignites.
No thorns can pierce the tender bloom,
That shelters love within its room.
A fragrant promise, sweet and deep,
A love I vow, forever to keep.
So take this rose, a gift divine,
A token of a love like mine.
And in its beauty, you will see,
The boundless love you share with me.

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3 FEB AT 23:21

Kafi talasha hai maine jisko,
Woh sukoon bankar aayi ho tum,
koshishein kar kar ke mangi hai dua rab se ,
Meri bejunoon mohabbat ka junoon ban kar aayi ho tum.
Bayan kya kare lafzon mein tumko k kaise dekhte hai tumko,
Log chaand mein talashte hai yaar apna aur meri zindagi mein woh chaand poonam ka bankar aayi ho tum

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24 JAN AT 22:56

छोड़ कर वो गली, इस नगर से चले
मंजिल की तरफ़, अपने घर से चले

नदी ने किनारों को, ज़ुदा कर दिया
हम इधर से चले, तुम उधर से चले

चाकू को बोलो,ये अखरी ख्वाहिश
वो इस सर से पहले, ज़िगर से चले

मैने सफ़र भी किया,तो ऐसा किया
दोस्त ना डर के चले,ना डर से चले

सारे कांटे चुरा लिए, पैरों से अपने
हम जिसकी भी सुनी,डगर से चले

इतने सारे हैं,तेरे आंसू पोछने वाले
देख मुर्दे भी उठ कर,क़बर से चले

बेवफ़ाई सिखाते थे,जो उसके यहां
इन स्कूल से ज़्यादा,वो मदरसे चले

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23 JAN AT 22:48

जब झूठ से काम निकल रहा है,
फिर सच का बोझ कोई क्यों उठाएगा
शहर भर में फल सस्ता मिल रहा
फिर खामखां बाग कोई क्यों लगाएगा
जब खुशियां सारी छोड़ जाने में हैं
फिर भला लौटकर कोई क्यों आएगा
खुद मुझे नहीं अभी तक समझ मेरी
फिर ये जमाना मुझे क्या खाक समझाएगा
ये जमाना यूं ही चलता आया है जमाने से,
ये जमाना यूं ही जमानों तक चलता जाएगा

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20 JAN AT 21:57

उससे छुपाए हमने कई राज भी हैं

मोहब्बत को छोड़कर, और बहुत सारे
कामकाज भी हैं

यार तेरी मोहब्बत में बदनामी का डर कैसा

तेरी मोहब्बत में बदनाम हम कल भी थे
बदनाम हम आज भी हैं

और जिंदगी में कुछ सख्त उसूल भी है मेरे

जी हम सीधो के लिए कबूतर, टेढो के
लिए बाज भी हैं

हम फकीर लोग है, नमाज पढ़ने जो
टोपी लगाकर जाते हैं

वही हमारी टोपी वही हमारे ताज भी हैं

मोहब्बत में इतनी खुद्दारी से, हिसाब
मांग रही हो तुम

मोहतरमा इतना बुरा बोल रही हो तुम
तुम्हें जरा सा शर्म लिहाज भी है

तेरे दिए कुछ जख्म जोड़ कर रखे हैं हमने

अंगूठी तो तुझे दे दी मगर निशान आज भी हैं

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16 JAN AT 1:37

ये नदिया ये पहाड़ ये फ़र्श ये फलक कुछ नहीं,
जो तू नहीं तो इस जहां में मेरे लिए फ़कत कुछ नहीं।
बड़ी मुद्दतों बात दिल मेरा खुश हुआ है किसी के साथ से,
अब बता कैसे कह दूं तेरे लिए मैं और मेरे लिए तू कुछ नहीं।

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14 JAN AT 20:39

इल्म है मुझें के मुहब्बत तो अब ना होगी.
शतरंज खेलता हूं में महज़ मात खाने को.

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14 JAN AT 19:38

इश्क वालो को फुर्सत कहां की वो गम लिखें...

कलम इधर लाओ बेवफाओ के बारे में हम लिखें.

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14 JAN AT 19:36

* चलो अपनी चाहते निलाम करते है....
मोहब्बत का सौदा सरें आम करते है.....
तुम अपना साथ हमारे नाम कर दो.....
हम अपनी जिन्दगी तुम्हारे नाम कर देते है....! *

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13 JAN AT 17:45

मोहब्बत तो थी दोनों को पर पहल कौन करे,
अब ये इक गुत्थी थी उनकी तो हल कौन करे....

हुआ जब इकरार तो आ गई दरमियां जात,
लेकिन माँ बाप के आगे चक्कर की बात कौन करे....

बन्दा बड़ा होशियार और बन्दी थी समझदार,
अब आई इस मुसीबत को खत्म कौन करे....

न नज़र आ रही मंजिल और नहीं कोई साहिल,
ये एक कश्ती के मुसाफिर को साथ कौन करे....

था जात का अफ़सोस अब लगी उसमें आग,
मोहब्बत में गिरफ्तार परिदों को अब एक कौन करे.....

आखिर फ़रमाया उन्होने की समझो हमें भी यार,
अब 'अंकुश" के अलावा ये समझदारी करे भी तो कौन करे...

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