— बहन —
कब छोटी से बड़ी हो गयी तू,
घर के आंगन को यूँ महकाते हुए..
अभी भी छोटी सी ही लगती है,
लड़ते, झगड़ते और फिर मनाते हुए..
नम कर देती हैं आखें कभी,
वो बचपन की यादों को याद दिलाते हुए..
आगे बढ़ती रहे तू हमेशा,
पलकों पर अपने सपने सजाते हुए..
कम करती रहे तू फ़ासला अपनी मंज़िलों से,
अपनी आशाओं का दीपक जगमगाते हुए..
बस कहना चाहते है इक छोटी सी बात,
की गर्व है तुझ पर हमें,
इस सच्ची कविता को दुनिया के समक्ष बतलाते हुए..-
Those times of endless attention and selfless love are gone..
Yeah i am rude and you a lier,
At last finally, It’s time to move on..-
बैठाया तुझे जहाज़ों में,
हम पैदल चल दिए..
हम ने दिया अपना दिल तुझे
पर तुमने बस छल दिए..
यह सब करते करते हमारी शेरवानी का ना जाने कब कच्छा हुआ..
चलो हम बेवफ़ा सही और तुम झूठी,
पर जो हुआ अच्छा हुआ-
' इश्क़ कुछ ऐसा भी '
कुछ खट्टा सा कुछ मीठा है,
यह इश्क़ का स्वाद कुछ तीखा है..
हुआ था हमें भी इक दफा,
पर अब लगता कुछ फीखा है..
कब एक दूसरे से मिले हम,
न जाने यूं कब दूर हुए..
हर कोशिश करते रहे खुश रहने की,
पर बेवफा के नाम से मशहूर हुए..
जो करते थे हर शाम को बात,
अब उनकी सूरत को तरसते हैं..
जिस बारिश का था मोह हमें,
अब वो बादल नहीं बरसते हैं..
क्या कह गयी दुनिया तुम्हें,
अब उनकी बातें सुना करो ..
जब छूठ गया पीछे सब,
अब झूठे सपने बुना करो..
लगी तुम्हारी बातें कुछ मीठी सी,
पर जाने कब तलवार हुई..
बंद करके आंखें बैठे थे,
अब नैनों में कुछ धार हुई..
शायद नहीं है आसान समझना,
यह इश्क़ का रोग ही ऐसा है..
इक बार हुआ फिर न लगे पहले सा,
यह मृगतृष्णा के जैसा है..
खुद को भूल गयी तुम,
क्यों दुनिया से तुलना करने लगी..
भरोसे और प्यार को छोड़ कर,
बस अफवाहों से पेट भरने लगी..
अब लगता है यह सही हुआ,
शायद यही खव्हाहिशों का घूरा है..
कुछ मिलकर बहुत कुछ खो दिया,
शायद इश्क़ का अर्थ ही अधूरा है..-
~ अनमोल रिश्ता ~
एक रिश्ता है अन्जाना सा,
कहीं देखा सुना पहचाना सा ..
है रिश्ता जिसका कोई मोल नहीं,
परिभाषा दे ऐसे कोई बोल नहीं ..
है पवित्र वो दीये की ज्योति सा,
है स्वच्छ सफ़ेद वो मोती सा ..
ना इसमें देखा बैर कोई,
है अपने सब न ग़ैर कोई ..
लगे खुद की ही परछाई सा,
है मिर्च के बीच मिठाई सा ..
जो किसी वादे से न निर्मित हो,
जो झूठी अफ़्वहों से न विचलित हो ..
जो उम्मीदों का सदेव मान रखे,
जो हर परिस्थिति में सम्मान रखे ..
हो कभी मिश्री तो कभी करेले सा,
हो सब कुछ पर न हो अकेले सा ..
हो प्यासे के लिए वो पानी सा,
हो शिक्षा से भरी कहानी सा ..
हो विश्वास सा अड़िग और न किसी भ्रम सा,
न हो नसीब पर निर्भर पर कुछ हो परिश्रम सा ..
है साथ हमेशा का जो की बड़ा अनोखा है,
तूफानों में स्थिर रहे ऐसी वो नौका है ..
है यह परिभाषा ऐसे रिश्ते की जो स्वयं में विचित्र है,
देखो और खोजो शायद इस कविता में कहीं आपका अपना मित्र है .. 😇
-
|| परमार्थ ||
ज़िंदगी की ख़ोज में चल पड़ा हूँ,
कई बार धक्कों से गिरा पर फिर उठ खड़ा हूँ ..
पहेली सी लगने लगी है मंज़िल अब मुझे,
हर डगर पर पहाड़ो से अकेले लड़ा हूँ ..
रास्ते में मिले कुछ लोग मुझे,
कुछ खुद को अपने कुछ पराये बताते थे ..
जिन्होंने कहा अपना मुझे वो जल्दी छोड़ गए,
अच्छे वक़्त में ही वह सब अपने कहलाते थे ..
अच्छा हुआ छोड़ आया उन रिश्तों को,
मिट्टी में दफ़्न आज कर आया हूँ ..
अब बारिश होने को है मौसम का कहना है यह,
इसीलिए अकेला ही कुछ फूलों के पौधें लेकर आया हूँ ..
अब इन्हीं पौधों से ही है मुलाक़ात मेरी,
बड़े होने पर यह जज़्बात समझते हैं ..
जिन हाथों ने रोपा है इन्हें दिल से हर पहर,
वहीं हाथ इनकी खुशबू से आज भी महकते हैं ..
इनकी ख़ूबसूरती बताएगी मेहनत मेरी,
और चढ़ाये जायेगे यह मंदिरों और मज़ारों पर ..
महकेगा पूरा बाग़ इनकी महक से,
और जाएगी महक हर धर्म के इंसानों तक ..
सीखा गई यह ज़िन्दगी बड़ी सीख मुझे,
की जीना दूसरों के लिए बड़ी बात है ..
खुद के लिए तो खुद खुदा भी नहीं जीता है,
और इंसानियत ही दुनिया की सबसे बड़ी जात है ..
तो रख ले कुछ पल अपनी ज़िन्दगी के किसी दूसरे के लिए,
नीयत को अपनी साफ करके ..
और मदद कर दे किसी परेशान की दिल से,
अपने बुरे कर्मों का इन्साफ करके ..-
|| मुस्कुराहट या मुखौटा ||
मुस्कुरा कर आता है सामने,
लगता है खुशियों को थामे हुए चल रहा है..
हर मर्ज़ की दवा है हॅंसी उसकी,
उसी की परछाई में अंदर कहीं ग़मों के बीच जल रहा है ..
आँखों में नमी रहती है उसकी,
अकेले में ही रोया करता है..
देख लेता है किसी को करीब आते हुए जब कभी,
अपनी मुस्कराहट को लाल आँखों में पिरोया करता है ..
अपनों को दिल में और गैरों को भी गले लगाए रखता है,
लोगों के दिए हुए नाकाम वादे और फूल मुरझाए रखता है ..
ख़ुद्दारी की गर्मी मे तपता हुआ पाया है उसको,
दिन ब दिन ज़िन्दगी की ठोखरों से और मज़बूत दिखाई पड़ता है ..
खंज़र हज़ार लिए पीठ पर चलता दिखाई पड़ता है,
नाउम्मीद में भी उम्मीद का उसे हल्ला सुनाई पड़ता है ..
कुर्बानी दे रहा है वो अपने कई सपनों की,
अपनों की ज़िम्मेदारी का तिलक माथे पर सजाए रखता है ..
अफ़वाए अनसुनी कर विश्वास उसे करते देखा है,
अपनी पसंद को हमेशा सबसे नीचे रखते देखा है ..
अपशब्दों को भी सम्मान से पी गया वो,
पतझड़ में भी इसीलिए उसे सबने फलते देखा है ..
देखा है क्या उसे तुमने यहीं कहीं गुज़रते हुए,
शायद दिखा होगा यहीं कहीं गिर गिरकर फिर सम्हलते हुए..
इस बार फिर दिखे तुम्हे कहीं तो खुद से पूछना ज़रूर,
क्या मुस्कुरा कर आता है सामने .........?? 😊😷-
|| बदलाव ||
आज इन्सान अंदर का सोच सोच कर फिर से यूँ बहका है,
कह रहा है की उसने इंसान बदलते देखा है ..
हर चीज़ अब छोटी लगने लगी है,
सब होते हुए भी न जाने किसकी कमी है ..
शायद आज भरी आँखों से मैंने सूरज को ढ़लते देखा है
हाँ मैंने इंसान बदलते देखा है ..
फ़रियाद सुनने के लिए शायद बस परवरदिगार है,
वह भी आँखें बंद कर बैठा है शायद इतना ही उसे भी प्यार है..
बस माँ बाप को मैंने चोट पर मलहम मलते देखा है
हाँ मैंने इंसान बदलते देखा है ..
पर फ़रियाद करने की शायद आदत सी पड़ गई है,
जो उम्मीदें थी वो कहीं नाउम्मीद में गड गई हैं..
मैंने साफ दिल के इंसान को भी ग़मों में जलते देखा है
हाँ मैंने इंसान बदलते देखा है ..
हैरानी ज्यादा नहीं है बस विश्वास भरपूर किया था ,
फासला मंज़िल का कम था पर साथ निभाने का रास्ता सबसे लंबा लिया था ..
मैंने लोगों के सारे अरमानों को पल में कुचलते देखा है
हाँ मैंने इंसान बदलते देखा है ..
याद रहेगी अब ज़हन में इन सब चीज़ों की,
नहीं पड़ेगी ज़रूरत अब इन्हें किसी लफ़्ज़ों की..
आज मैंने फूलों के बीच काटों को फलते देखा है
हाँ मैंने इंसान बदलते देखा है !!-
|| हिसाब जीवन का ||
बैठा हूँ हिसाब लगाने जीवन का,
पर हिसाब बताने के लिए बोल नहीं..
लिख रहा हूँ इसीलिए कलम लेकर,
कि किस बात का मोल है और किस बात का मोल नहीं..
रहीसी का अहंकार हो या गरीबी की हो मजबूरी,
दूसरों का साथ हो या अपनों से हो दूरी..
स्नेह हो शुन्य सा और घृणा मन में हो पूरी,
आत्मा हो मैली पर रोज इत्र लगाना हो ज़रूरी..
चैन न हो दिल में और भागदौड़ हो चार पहर,
पैसों से हो बलवान हम और उसकी कमी का ही हो कहर..
मन में न हो प्रेम और न दूसरों के ज़ख्मो पर मेहर,
पेट भर खाना हो और चिंता की भरपूर लहर..
न रहे गंभीर और हो हम उथले पानी में,
सत्य को त्यागकर हम शांत करे मन एक असत्य कहानी में..
शीशे उतार कर रोज प्रतिबिंब देखे हम अपनी मनमानी में,
संस्कारों को स्वयं से छीलकर रखे हम कूड़ा दानी में..
माता पिता को दूर रख हम बनाए आशियाँ अपना सा,
तमाम खुशियाँ खोजें हम जो असल में हो एक भयानक सपना सा..
रहे सब सुख सुविधाओं से घिरे हुए पर रात में मन से हो थकना सा,
यह तो कुछ यूं हुआ जैसे हथेली को काँटों पर हो रखना सा..
आँसू हो भरपूर पर निकले केवल अकेले में,
तलाश रहें हों अपनों को जैसे बिछड़े हो किसी मेले में..
अज्ञानी बन कर हम ढूंढे गुरु को ही चेले में,
मिठास को ज़ुबान से रखे वंचित हम और रखें कड़वाहट जैसे करेले में..
अगर इन शब्दों पर निगाहें जाती रहीं हों तुम्हारी,
हो रहे हो गंभीर एक क्षण के लिए देख खुद की यह लाचारी..
और बुराइयाँ त्यागकर कर रहे हो सुन्दर सीरत रचने की तैयारी,
तभी हो सकेगी दूर यह हृदय से बिमारी..
तो जागो, उठो और बूझो क्योंकि यह सारी बातें गोल नहीं,
कि किस बात का तुम्हारे जीवन में मोल है और किस बात का मोल नहीं .....😇-