"बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है
हर शाख पे उल्लू बैठे हैं अंजाम-ऐ-गुलिस्तां क्या होगा."-
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तुझ को गुरुर ए हुस्न है मुझ को सुरूर ए फ़न
दोनों को खुदपसंदगी की लत बुरी भी है
तुझ में छुपा के खुद को मैं रख दूँ मग़र मुझे
कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है..!-
मुख़्तसर सी ज़िंदगी के
अजीब से अफ़साने हैं ,
यहाँ तीर भी चलाने हैं
और परिंदे भी बचाने हैं-
मेरे जैसे 'शून्य' को,
'शून्य' का ज्ञान बताया,
हर अंक के साथ 'शून्य',
जुड़ने का महत्व बताया।-
गुरु की उर्जा सूर्य-सी, अम्बर-सा विस्तार।
गुरु की गरिमा से बड़ा, नहीं कहीं आकार।
गुरु का सद्सान्निध्य ही, जग में हैं उपहार।
प्रस्तर को क्षण-क्षण गढ़े, मूरत हो तैयार-
तुम सींग मारती गईया सी मैं कोने मे दुबका बैल प्रिये...
मैं सीधा सादा पीपल सा तुम उसपे लटकी चुड़ैल प्रिये..!-
है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये हैं
पिता, जिसके रक्त ने उज्ज्वल किया कुल-वंश माथा
मां वही, जो दूध से इस देश की रज तोल आई
बहन, जिसने सावनों में भर लिया पतझर स्वयं ही
हाथ न उलझें कलाई से, जो राखी खोल लाई
बतियाँ, जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रही थीं
"पिता तुम पर गर्व है" चुपचाप जाकर बोल आईं
प्रिया, जिस की चूड़ियों में सितारे से टूटते थे
मांग का सिंदूर दे कर जो उजाले मोल लाई
है नमन, उस देहरी को, जहाँ तुम खेले कन्हैया
घर, तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गए हैं
है नमन उनको, कि जिनके सामने बौना हिमालय...
#IndependenceDay2020-
न द्वारका में मिलें बिराजे, बिरज की गलियों में भी नहीं हो
न योगियों के हो ध्यान में तुम, अहं जड़े ज्ञान में नहीं हो
तुम्हें ये जग ढूँढता है मोहन, मगर इसे ये ख़बर नहीं है
बस एक मेरा है भाग्य मोहन, अगर कहीं हो तो तुम यहीं हो-
पाँच अगस्त बस पांच नही,
यह पंचामृत कहलायेगा!
एक रामायण फिरसे अब,
राम मंदिर का लिखा जाएगा!!
जितना समझ रहे हो उतना,
भूमिपूजन आसान न था!
इसके खातिर जाने कितने,
माताओं का दीप बुझा!!
गुम्बज पर चढ़कर कोठारी,
बन्धुओं ने गोली खाई थी!
नाम सैकड़ो गुमनाम हैं,
जिन्होंने जान गवाई थी!!
इसी पांच अगस्त के खातिर,
पांचसौ वर्षो तक संघर्ष किया!
कई पीढ़ियाँ खपि तो खपि,
आगे भी जीवन उत्सर्ग किया!!
राम हमारे ही लिए नही बस,
उतने ही राम तुम्हारे हैं!
जो राम न समझसके वो,
सचमुच किस्मत के मारे हैं!!
एक गुजारिस है सबसे बस,
दीपक एक जला देना!
पाँच अगस्त के भूमिपूजन में,
अपना प्रकाश पहुँचा देना!!
नही जरूरत आने की कुछ,
इतनी ही हाजरी काफी है!
राम नाम का दीप जला तो,
कुछ चूक भी हो तो माफी है!!
कविता नही यह सीधे सीधे,
रामभक्तो को निमन्त्रण है!
असल सनातनी कहलाने का,
समझो कविता आमंत्रण है!!-
रात और दिन का फासला हूँ मैं
ख़ुद से कब से नहीं मिला हूँ मैं
ख़ुद भी शामिल नहीं सफ़र में, पर
लोग कहते हैं काफिला हूँ मैं
ऐ मुहब्बत! तेरी अदालत में
एक शिकवा हूँ, एक गिला हूँ मैं
मिलते रहिए, कि मिलते रहने से
मिलते रहने का सिलसिला हूँ मैं-