कैसी राह दिखाई है,
आगे गहरी खाई है।
जो नाली में डूबा है,
वो ही मेरा सांई है।
तुम्हरा चना चबैना है,
हमरी पाई- पाई है।
कैसे कुंभ नहाओगे,
क्षिप्रा में तो काई है।
हम जंगल के बंदर है,
महलों में आग लगाई है।
तुमने बात बढ़ाई थी,
हमने बात बनाई है।
उस राधा के दर्पण में,
कान्हा की परछाँईं है।
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