Anku Singh Parashar   (#ankuparashar_quotes ❤)
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Joined 1 April 2018


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Joined 1 April 2018

मोहब्बतें घूंट !

किसी को रुलाने की सज़ा तू भी भुगत,
मयखाने की चौखटो के जा ठोकर खा ।
क्यों कोसता हैं जिंदगी को पीकर शराब,
मोहब्बते-दगा मिलना भी हैं शबाब ।।

शराब साकन है सोभती ग़मदार को,
जो न पिया ना जीया उसे धिक्कार हो ।
न उतरा मोहब्बतें घूंट हलक में जिसके,
शराब पीने का वही सही हकदार हो ।।

ग़लत कर तुम भी एक बार होश मे आ,
जा मयखाने के दो-चार चक्कर लगा ।
किसी पियक्कड़ से ही पुछ ले इश्क़ का पता,
सच जान उन लबों से बेशक जो बजारू-बेकार हों ।।

होश वाले पूछते है नशा पीकर मेरा,
तू कभी तो गिरा होगा ग़मो में जी कर ।
तो टीस तुझे भी है मेरे होने का यहां,
जहां की बातें बनाने में तुझे भी आने लगा मज़ा ।।

गर इल्ज़ाम लगाना आता हो तो ही खोल तेरे लब,
जो हसरतों से तबाह और नियति से बेपरवाह हो ।
क्या करेगा कोई बुराई उसका जिसे काल का पता हो,
जो तू बहकीं सी बात करता है बता किसका शिनाख्त करता है।।

मुझमें तो मेरा कुछ भी नहीं जो है सब उसका है,
उसके नशें में डुबा मैं हमेशा खुश रहता है ।
जो सोच से परे हो अखीर उससे कौन बैर करे,
पुछने वाला नशा मेरा शायद मयखाने का पता पुछता है।।

मय चौखट से उतरते क़दम तेरे भी लड़खड़ाने लगें,
जुबां पर मेरे खिलाफ बनावटी बाते आने लगें ।
तो एक बार देख ले खुद के भी पद चिन्हों को,
कहीं तु भी मेरे रास्ते पर तो ना चल पड़ा हो ।।

© - अंकु पाराशर

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मोहब्बतें घूंट !

किसी को रुलाने की सज़ा तू भी भुगत,
मयखाने की चौखटो के जा ठोकर खा ।
क्यों कोसता हैं जिंदगी को पीकर शराब,
मोहब्बते-दगा मिलना भी हैं शबाब ।।

शराब साकन है सोभती ग़मदार को,
जो न पिया ना जीया उसे धिक्कार हो ।
न उतरा मोहब्बतें घूंट हलक में जिसके,
शराब पीने का वही सही हकदार हो ।।

ग़लत कर तुम भी एक बार होश मे आ,
जा मयखाने के दो-चार चक्कर लगा ।
किसी पियक्कड़ से ही पुछ ले इश्क़ का पता,
सच जान उन लबों से बेशक जो बजारू-बेकार हों ।।

होश वाले पूछते है नशा पीकर मेरा,
तू कभी तो गिरा होगा ग़मो में जी कर ।
तो टीस तुझे भी है मेरे होने का यहां,
जहां की बातें बनाने में तुझे भी आने लगा मज़ा ।।

गर इल्ज़ाम लगाना आता हो तो ही खोल तेरे लब,
जो हसरतों से तबाह और नियति से बेपरवाह हो ।
क्या करेगा कोई बुराई उसका जिसे काल का पता हो,
जो तू बहकीं सी बात करता है बता किसका शिनाख्त करता है।।

मुझमें तो मेरा कुछ भी नहीं जो है सब उसका है,
उसके नशें में डुबा मैं हमेशा खुश रहता है ।
जो सोच से परे हो अखीर उससे कौन बैर करे,
पुछने वाला नशा मेरा शायद मयखाने का पता पुछता है।।

मय चौखट से उतरते क़दम तेरे भी लड़खड़ाने लगें,
जुबां पर मेरे खिलाफ बनावटी बाते आने लगें ।
तो एक बार देख ले खुद के भी पद चिन्हों को,
कहीं तु भी मेरे रास्ते पर तो ना चल पड़ा हो ।।

© - अंकु पाराशर

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23 JUN AT 3:47

अध्याय - 114

तो ब्रह्माण्ड नामक जो विषय वस्तु है वह अनसुलझा था,अनसुलझा है और अनसुलझा रहेगा।

अब आप पूछोगे कैसे.?इस सवाल का जो पहला जवाब मेरे दिमाग में आ रहा है,वह है अंत। अंत हर सवाल का और सवाल करने वाले का,या जवाब और जवाब खोजने वाले का,अच्छा एक सामान्य लेकिन महत्वपूर्ण बात मैं कहुं की इन्सान अपने जीवन के मध्यकाल में सबसे महत्वपूर्ण फैसले लेता है या विशिष्ट खोज करता है तब वह सबसे ज्यादा समझदार होता है और सबसे ज्यादा उपजाऊ भी,अतः मैं यह कहना चाहता हूं की जब से इन्सानी समय का शुभारंभ इस धरा पर होता है तब बचपन से जवानी तक पहुंच कर इन्सान प्राकृत के द्वारा दिए गये सौन्दर्य को भोगने की लालसा में ब्रह्माण्ड के महत्वपूर्ण सिद्धांत की सिद्धि कर रहा होता है और जैसे ही सिद्धि प्राप्त होती है वह एकदम से जिम्मेदारीओ के बोझ तले दबा अपने जीवन में मध्य भाग को बहुत कुछ समझने मे लगा कर सबसे ज्यादा अपने दिमाग का प्रयोग जीवन के अंत की तैयारी में लगा देता है।यही वह समय होता है जब इन्सान समझदार होता है और इस समय लिए गये फैसले उस अमुक इन्सान भविष्य की नींव रखते है।

यही से तय होता है इन्सान द्वारा सृजित अगले इकाई का अगले मध्यम पड़ाव की तरफ का सफर और उस इन्सान के अगले पड़ाव या अंत की तरफ का सफर,हम हमेशा समय के मध्य भाग में जीवन जीते है और ब्रह्माण्ड के अनसुलझा रहने का भी यही कारण है।

© - अंकु पाराशर

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27 MAY AT 1:21

अध्याय - 113

अच्छा अब फिर से वही बात करते हैं समय के शुरूआत की तो आप को क्या लगता है समय कब शुरू हुआ होगा.?

मेरे लिए तो समय का शुभारंभ मेरे पैदा होने से शुरू हुआ और जीवन के अंत के साथ खत्म हो जाएगा।लेकिन मेरे अलावा और भी बहुत सारी चीज़ें हैं दुनिया में जो अनंत समय से यहां पर विराजमान हैं और शायद अपने अंत की तरफ बढ़ रही है और शायद उस अंत तक पहुंचने में भी अनंत समय लगे तो समय का सही शुरुआत कब हुआ यह सवाल एक ऐसा सवाल है जिसका सही आकलन करना शायद मुर्खतापूर्ण है,क्योंकि आप जो भी अनुमान लगाएंगे एक समय बाद वह ग़लत साबित हो जाएगा।अतः समय एक मायावी जाल की तरह है ना तो उसके अंत का पता है और ना ही शुरूआत का,हम केवल उसके मध्य भाग को ही जानते हैं और हमेशा इसी मध्यम भाग को आने वाली अनंत ईकाईयां भी जान पाएंगी, क्योंकि समय केवल हमारा अपना निश्चित है,ना की समय के समय का।अतः समय की शुरुआत और अंत केवल एक मात्र मायावी कल्पना भर है।

अतः अगर आप समय के अनंत शुरुआत के बारे में सोचें तो यह कितना रोमांचक है ना,ना तो आप की उपस्थिति शुरुआत से है और ना ही आप अंत तक रहेंगे फिर भी आप समय को ले कर चिन्तित है,जबकि शायद कई बार इस ब्रह्माण्ड का अंत और शुरूआत हुआ होगा या फिर हमारे सोच से परे यह सब कुछ कभी शुरू ही नहीं हुआ हो और ना ही कभी कोई अंत होगा!या फिर यह ब्रह्माण्ड का एक यक्ष प्रश्न भर हो?


© - अंकु पाराशर

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16 MAY AT 20:08

ठगी हुईं मोहब्बत।

मन को मरोड़ कर रह जाता हूं,
जब भी आपको देखता हूं मैं मर जाता हूं।
मुझे पता है मेरा हद हसरतें तृष्णा,
छुपा कर अपना मर्म मुतमइन मैं खो जाता हूं।
मतलब तेरा मुझसे कुछ भी नहीं,
तू क्या ख़ुदा है जो हर दफा मैं तुझसे रूठ जाता हूं।
बता मेरा राहों कर्म, रहमत का नुस्खा,
अगर मैं मर भी जाऊं तो बता कहां चैन पाता हूं।
जो जिन्दा मर गये चाहट की मार,
मरने वाली बेचैन हर रूह पसरा आहट सुकून कहा है।
ज़िन्दगी है दो टके की टिकी हवा पर,
बता किसी ने हवा को अब तक देखा क्या है।
कहने की बात है मोहब्बत,
मोहब्बत होती तो बता,यह बात कहने की जरूरत क्या है।
हक उस आसमां का है तुझ पर अधूरा,
आया था तु जिस भी मकसद से जल्द ही उसे पुरा कर।
कसमें,वादे,नफरत,मोहब्बत सब हमने ही बनाए हैं,
हम हमी से हमें ठगते रहे ठगों का मोहब्बत से वास्ता क्या है।
जिसने भी जीभर कोशिश की जिन्दगी को ठगने का,
ठगी हुईं मोहब्बत उनके हिस्से आई तुने अभी ज़िन्दगी ज़िया कहा है।

© - अंकु पाराशर

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21 APR AT 1:04

अध्याय - 112

आज कुछ अलग बात होगी, जो थोड़ी सी टेक्निकल है शायद आप इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के समय में इसे समझ जाएंगे!

तो समय के, समयानुसार जो समय हमारे विकास में लगा उसके शुरूआत से कुछ यूनिक अनुवांशिक साफ्टवेयर इन्सानों के अंदर ऐसा इनबिल्ट हुआ है की आप से आपका भाई आपके ही जेनेटिक कोड के साथ आपके अनुवांशिक कोड़ से बिल्कुल अलग अनुवांशिक कोड़ को वहन करता है। आप एक ही ईकाई से पैदा हो कर भी कुछ ऐसे आनुवांशिक साफ्टवेयर से इनबिल्ट है की वह कोड आपको अपने खुदके भाई से एक लेवल पर बिल्कुल अलग है। तो मैं यह कहना चाहता हूं की भारत ने "वसुधैव कुटुंबकम" का एक फिलोसॉफी दुनिया को दिया है, मतलब की विश्व का सभी समाज आपस में कुटुम्ब की तरह है। एक शब्द में हम सब मानव होते हुए भी एक दुसरे से अनुवांशिक लेवल पर इतना अलग है की भाई अपने खुदके भाई से एक लेवल पर असमान्य रूप से अलग है और बहन अपनी खुदके बहन से अनुवांशिक लेवल पर अलग है। तो कहने का मतलब की पुरे विश्व का इन्सान एक ही अनुवांशिक संरचना के कोडिंग के साथ एक दुसरे से अलग संरचना को वहन करते है। मतलब की हम एक जैसे होते हुए भी एक दुसरे से बहुत अलग है, मतलब की सोच, समझ और संरचना के आधार पर हमें निर्माता ने हम में कितना टेक्निकल विविधता रखा है।

तो सोचों जिसने हमें बनाता है वह ईकाई हमसे कितना उन्नत और किस बौद्धिक प्रभुता का मालिक है !

© - अंकु पाराशर

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19 APR AT 3:08

जो जैसा है उसे वैसे ही अपनाना शायद इनसानीयत की परिभाषा है ! लेकिन बात अगर आपके आस्तित्व पर आ जाएं तो आप क्या करेंगे ?

और अगर आप अपने आस्तित्व की बात कर ही रहे हैं तो आप सच में कौन सी जाती के है आप जानते हैं !एक बार सोचिये आपका बच्चा नामकरण से पहले कौन सी जाती में पैदा हुआ था और अगर हमसे विकसित कोई सभ्यता हमे देख रही हो तो हमें कौन सी जाती का मानेंगी ?

शायद हम ही धरती पर रहने वाले सभी प्रकार के जानवरों को केवल उनके एक नाम से, पुरी जनसंख्या को संबोधित कर देते है, और भला आपके साथ आपके घर में पलने वाले जानवर जैसे कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस या उट इत्यादि भी आपके घर आने जाने वाले सभी लोगों को एक ही प्रकार के मानवीय के रूप में देखकर क्या भौंकता , चिचियाता, घिघियाता या चिंघाड़ता नही है..?

© - अंकु पाराशर


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4 APR AT 1:46

अध्याय - 111

आप अगर सयम के दिशा पर ध्यान दें तो आप समझ सकें,समय केवल और केवल आगे की तरफ बढ़ रहा है जबकि हर वो व्यवस्था जो दृश्य-अदृश्य है वह अपने अंतकाल मतलब की पिछे की दिशा में बढ़ रहा है!

अब आप एक सवाल खड़ा कर सकते हैं की हर वह दृश्य-अदृश्य पिछे की दिशा का मतलब अंतकाल की ओर कैसे बढ़ रहा है? अच्छा आप सोचें एक बच्चा जो पैदा होता है वहां आगे की दिशा में बढ़ते हुए विकसित हो कर कौन सी दिशा की तरफ बढ़ता है।अगर आपके सोच के अनुसार पिछे की दिशा में बच्चे का विकास होने लगे तो क्या बच्चा फिर से सिकुड़ा हुआ उस एकल बिज का रूप ले कर उन अणुओं के रूप में अपने मूल रूप में पहुंच कर ख़त्म नहीं हो जाएंगा और अगर आगे की तरफ उस बच्चे का विकास शुरू हो जैसा ब्रह्माण्ड के नियम के अनुसार हमेशा होता है,तो वह बच्चा आगे की दिशा में विकसित हो कर क्या फिर से अपने अंत की तरफ बढ़ता हुआ वयोवृद्ध अवस्था में अपने अंत की तरफ नहीं पहुंच जाएंगा? तो क्या केवल समय आगे की दिशा में नहीं बढ़ रहा? जबकि दृश्य और अदृश्य पिछे की तरफ बढ़ता हुआ अपने उसी अंत की तरफ बढ़ रहा। जहा से हर दिशा में आगे या पिछे बढ़ते हुए वह केवल और केवल एक अंत को प्राप्त हो रहा है।

तो समय की चाल से अगर उसके आस्तित्व के बारे मे सोचा जाएं तो क्या समय वह मायावी ईकाई की तरह प्रतीत नहीं हो रहा जो एक अनंत ईकाई होने का दावा ठोक रहा हो?

© - अंकु पाराशर

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4 APR AT 1:16

अध्याय - 110

किसी भी सकारात्मक घटना के होने के लिए सकारात्मक समय का होना बहुत जरूरी है। और नकारात्मक घटना के होने के लिए भी उस घटना के पक्ष में सकारात्मक समय का होना जरूरी है!

अतः समय ब्रह्माण्ड के शुरूआत के बहुत पहले से मौजूद हैं, जीसे हम अभी समय समझते हैं वह समय केवल और केवल हमारे बौद्धिक संभाग के अनुरूप हमारे आस्तित्व में आने के पहले से मौजूद वह अनुभूति है जिसने हमें ब्रह्माण्ड को समझने में अहम योगदान दिया है। समय ही वह महत्वपूर्ण इकाई है जिसने हमें जीवन को भी समझने का सहुलियत प्रदान किया है। समय ने हमें हमारे अस्तित्व और अतीत को हम से जोड़े रखा है,जैसे आपने अपने पिछले पांचवें पीढ़ी के पुर्वज को ना तो देखा है और ना ही उन्हें पता था की पांच सौ सालों बाद आप पैदा होंगे। लेकिन आज आप है और अपने पुर्व के पुर्वजों के आस्तित्व को मान रहे हैं अतः समय तब भी था आज भी है और आगे भी ऐसे ही रहेगा। केवल और केवल आप के आस्तित्व का समय निर्धारित है बिल्कुल वैसे ही ब्रह्माण्ड के आस्तित्व का भी समय निर्धारित है,तो अब आप सोचें अगर समय ब्रह्माण्ड के बनने के पहले से मौजूद हैं, तो क्या हम जिस ब्रह्माण्ड में निवास करते हैं वह भी तेजी से अपने अंत की तरफ बढ़ रहा है? हां बिल्कुल बढ़ रहा है हर वो वस्तु जो आस्तित्व में है उसका अंत निश्चित है!

तो फिर सोचें समय आस्तित्व में कैसे आया होगा.?

© - अंकु पाराशर

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31 MAR AT 5:29

अध्याय - 109

जो शाश्वत है उसका प्रमाण नहीं खोजते केवल उसके प्रभाव का अध्ययन कर उसके द्वारा होंने वाले बदलाव को प्रमाण माना कर उसके होने पर मोहर लगा कर उसे उसी रूप में मान लेते हैं!

चुकी यह कहना की शुरुआत से पहले समय का भी कोई अस्तित्व नहीं था,मतलब की कुछ भी नहीं था,हमारी- तुम्हारी बात को छोड़ दो मैं यह कह रहा हूं की ब्रह्माण्ड भी नहीं था।तब,जब कुछ भी नहीं था से सब कुछ हुआ और आज जो भी है उसके बाद अगर समय की उत्पत्ति हुई है तो क्या यह सब होने के बीच में जो खालीपन था और सबकुछ होने की प्रक्रिया शुरू हुआ होगा तब उस खालीपन का पैमाना क्या होगा.?क्या तब समय का अस्तित्व किसी रूप में नहीं रहा होगा।अगर नहीं रहा तो शायद समय की जो परिभाषा हम गढ़ रहे हैं वह सरासर ग़लत है और शुरूआत के बिन्दु से पहले समय को अगर हम ऋणात्मक मानते हैं तो क्या जो प्रक्रिया शुरूआत की घटना को घटित होने मे लगा है वह आस्तित्व विहीन था।तो जब समय ही आस्तित्व में नहीं था तो ब्रह्माण्ड के शुरूआत का जो एक पल रहा होगा वह बिना समय के कैसे घटित हुआ होगा?अगर आप यह कहे की समय और शुरूआत दोनों एक ही घटनाएं थी तो उस शुरूआत को होने के पिछे की कहानी क्या हैं?

किसी घटना के घटित होने के लिए समय का पहले से मौजूद होना जरूरी है,समय के शुरूआत की बात कही जाए तो या तो समय ऋणात्मक था या सकारात्मक लेकिन समय पहले से मौजूद था।

© - अंकु पाराशर

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