कृष्ण - अर्जुन संवाद
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Zehan ke Alfaz nh
Dil ke jazbaat he
कहाँ फिरता है इतराता, जाने कैसी झूठी शान है।
तेरे घर का वो एक परदा, आज भी लहूलुहान है।।-
इस जीवन के रंगमंच पे,
मैं बैठा हूं कंकाल लिए।
परदे गिरने के इंतजार में,
सांसों का जंजाल लिए।।-
दिल में अजीब शोर सा है,
ज़हन में भी खामोशी छाई है।
मैं कहां सावन के इंतजार में था,
और तू है जो बैशाख लाई है।।-
हर इक लम्हे पे रो देते हो,
हर दूजे शख्स को जताते हो।
मैं इतना भी बुरा नहीं दोस्त,
जितना मुझको तुम बताते हो।।-
کوئ کیسے اس سے دور جائے کیسے اسے چھوڑ دے
اسکی طرف جاتے قدموں کو کیسے کوئی موڈ دے
ویسے تو پینے سے اب پرہیز سا ہی ہے میرا
زہر تو نہیں جو تیرے لبوں کو میں میں نچوڑ دے-
क्या पता अब फिर मोहब्बत होगी,
अब खुद से भी जरा कम करता हूं।
मैं भी निरा बेवकूफ जो ठहरा,
जो भी करता हूं एकदम करता हूं।।-
दर्द में भी हस रहे हो,
आओ इलाज करते हैं।
"ये जो मिरे अश्क हैं वो ज़रा शर्मीले हैं,
कमबख्त जमाने का लिहाज करते हैं।।"-
ये अंदर ही अंदर जाने कैसा बवाल है,
लगता तेरे जाने का अब भी मलाल है।-