वो करता है सवालात मुझसे
कैसे कटते हैं दिन रात तेरे
बस एक तिहाई नींद,आँधी घड़ी के ख़्वाब मेरे
शाम ओ शहर की होती ही नहीं कोई खबर
मुझ पर ही फ़िदा हुए सारे ग़म मेरे
मैं राही नया नया था ,सफ़र ऐ आशिक़ी मे
कच्चे मकानों में थे पक्के ख़्वाब मेरे
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ये क्या है कि आती नहीं है नींद मुझकौ….
कोई इश्क़ नाम लेता था तो मैं हँसता था पहले॥-
प्रेम में छली गई स्त्री का पाषाण हो जाना …एक भयावह क्रिया है॥
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वो कर गया है दीवाना मुझको
वो जो एक रोज़ मिलाएगा ख़ाक मे मुझको
मैं समझ रहा था मुहब्बत का अफ़साना जिसको
उसने सुना वो अफ़साना फिर कहा पागल मुझको
वैसे तो सबकुछ है घर में ,बाग है बहार है
पर उस एक शख्स की कमी ने कर दिया है वीरान मुझको
मैं तो ढूँढता था बहाना कोई , कहीं मिल जाये मुझे वो
फिर ये भी चाहता हूँ मिले ना वो शख्स दुबारा मुझको ॥-
वो बातें जो ना कही गई , ना सुनी गई
कितने बरसों तक सिसकती होगी किसी बन्द सन्दूक में॥-
मैं उसके ख़िलाफ़ गवाही ना दे पाऊँगा,
वो पहले महबूब है मेरा, बाद में गुनाहगार ॥-
ये और बात है कि तुम प्रेम कर सकते हो….लेकिन कोई तुमसे ही प्रेम करे ये बाध्यता अत्यधिक मुश्किल है॥
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मेरा दुख अलग है….ये बात कहते हुए मुझे याद आ गया मैंने कहा था कभी वो शख़्स जमाने से अलग है॥
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ये दुख और है के, मनपसंद शख़्स से मन की पीड़ा नहीं कही जा सकती॥
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