लफ्ज़ कम नहीं पड़ जाए तेरी तारीफ में ये दर सताता है ,
फिर वो तारीफ ही क्या जिसे शब्दों का भय खा जाता है !
आंखो से भी सुना है , बयां सब हो जाता है
दिल आंखो से न कुछ बोल पड़े ,इसलिए हमेशा शीशा (चश्मा) नजरो से पहले नजर आता है!
मगर तू करोड़ो में एक है , मन कैसे भूल जाता है
तभी हर बार तेरा मिलना अलग एहसास दे जाता है ...
लफ्ज़ कम नहीं पड़ जाए तेरी तारीफ में ये दर सताता है ,
फिर वो तारीफ ही क्या जिसे शब्दों का भय खा जाता है !
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