हर आरंभ का अंत नियति है,
लेकिन कहानियों का अंत ज़रूरत।
कहानियों का अंत जरूरी है
क्योंकि हर किरदार को अपना हिस्सा मिलना चाहिए
कहानी सुनने–कहने वाले की जेहन में ।
अधूरी कहानियों के शब्द, पंक्तियां और भाव
अक्सर धुंधले पड़ जाते हैं
उसके कहने वाले, सुनने वाले
और जीने वालों के लिए
उसका अंत ढूंढने के क्रम में ।-
बेहद हो जाइए, फिर जानिए मुझको ।
"अब चलता हूं"
तुम्हारा बस ये कहना जाने कितने
ऐसे सारे किस्से मुझे याद दिला जाता है
जिनका उस वक्त कह देना उतना ही
जरूरी लगता है,
जितना शिव का उमा को अमर कथा कहना ।
उन लम्हों में तुम्हारा दरवाजे की तरफ बढ़ना
मेरी मृत अवस्था को भी सजीव करने की
उतनी ही क्षमता रखता है,
जितनी क्षमता गोपियों में थी,
परम ज्ञानी उद्धव में प्रेम भर देने की ।
"अब कल मिलता हूं"
तुम्हारा ये कहना मुझे उतनी ही उम्मीद देता है
जितना रुक्मिणी को था कृष्ण के आने का,
लेकिन उतना ही निराश करता है,
जितना हरिप्रिया को करता है
हर बार विष्णु का बैकुंठ छोड़ कर जाना !-
मैंने तुमसे किए गए बहुत सारे वादे यूंही अधूरे छोड़ दिए
जबकि मैं भली भांति जानती हूं
वादे और घाव खुले रह जाएं तो कितनी तकलीफ देते हैं ।
लेकिन मुझे हर रोज अफसोस होता है
कि तुमने आजतक तकाज़ा क्यों नहीं किया?
क्या वो तुम नही थे?
क्या मैंने किसी बेहरूपिये के लिए खा ली इतनी कसमें?
या कोई स्वांग रचा था तुमने बस अपने किसी नाटक के लिए?
या... तुम हमेशा से ऐसे ही थे !
दूसरों की गलतियों में बेचारगी ढूंढ कर छुपने वाले,
अपने हक़ों पर हार मान लेने वाले ।
-
इंसान को कमरे और दिल की
खिड़कियां बड़ी रखनी चाहिए ।
खिड़कियां पारदर्शिता का प्रमाण होती हैं ।
अंदर वालों को भान होना चाहिए
बाहरी दुनिया के शोर का,
और बाहर वालों को
खबर रखनी चाहिए अंदर वालों की चुप का ।
Read Full piece in caption
-
इस ओर की
हरी मखमली घास से बनी ज़मीन,
उस ओर की
कंकड़-पत्थर से बनी ज़मीन,
दोनों के बीच के अंतर को
संज़ीदगी के साथ बयान कर रही ये दीवार
जिन्हें बनाया गया है खूबसूरत मखमली घास से ही।
कुछ इसी तरह से लांघनी पड़ती है,
मोहब्बत में
मोहब्बत से
बनायी गयी
मोहब्बत की दीवार !
-
और वो रातें जो गुज़री हैं तुमसे बात करते हुए
वहीं हैं इस कलम की स्याही
जिनसे मैं लिख पा रही हूँ
हमारे इश्क़ को मेरे इस आँचल में ।
लेकिन अहा ! अब जो तुमने कर दी है
जाने की बात,
तो चलो,समेट दो ये आँचल भी
बुझा दो वो सारी रातें
सिर्फ...ये कलम रहने देना ।-
मैं सांझ सावन सी मेरे शहर की,
तू भोर पूस सा तेरे शहर का,
विदित अवश्य है ये मेल प्रिय,
किंतु, विकट बहुत है ये खेल प्रिय ।-
मैंने तुम्हारे बाद,
तुम्हारे जितना इश्क़ सिर्फ समंदरों से किया ।
(Read full quote in caption)-
कुछ जर्जर ढांचों में जान भरता हुआ,
कुछ सिंदूरी मांग का चाँद बनता हुआ,
कुछ हमारी ज़िंदगी का गीत बनता हुआ,
इक सूरज बुझ रहा है, दिन को सांझ करता हुआ ।
-