मेरे समक्ष कई मुश्किलें खड़ी हैं
पर मेरे प्रयास मेरी सफलता से भी बड़े हैं,
हालात परखेगा मुझे वक्त दिखाएगा आईना
मैं भी दिखला दूंगी कि हम जिद्द पर अड़े हैं।-
किसी के तड़पने से कोई लौट आता
तो क्या बात होती
हम भी मुस्कुरा कर करते मोहब्बत
तो क्या बात होती,
फ़क़त तेरे लिए ही हम जीते मरते है
ग़र तू भी ऐसा कहता तो फिर
क्या ही बात होती।-
अपनी कोशिशों में मैं ईमानदार नहीं
या सफलता की मैं हक़दार नहीं,
क्या सोचूं अब मैं अपने बारे में
मैं तो खुद से भी वफ़ादार नहीं।-
हम वादे तो करते हैं
पर मिल नहीं पाते हैं
हम क्या से क्या हो जाते हैं,
मैं सोचती हूं अक्सर कि
जिस वक्त के इंतज़ार में
ये जो वक्त हम गवां रहे हैं,
क्या उस वक्त हम
सब कुछ पा जाते हैं ?
या बस इन झूठी उम्मीदों से ही
हम अपना मन बहलाते हैं।-
जब तक किसी की कहानी में
आपका कोई किस्सा कैद हैं,
यक़ीन मानिए, तब तक चाह कर भी
आप आज़ाद नहीं।
इसलिए मैं छूट जाना चाहती हूं
कई कई किस्सों से,
जो बीत गया है उन हिस्सों से
ताकि नए सिरे से
अपना जीवन गढ़ सकूं,
ये अदृश्य क़ैद मुझे जीने नहीं देते
चाह कर भी किसी का होने नहीं देते।-
ताउम्र मैं मक़ाम तय करता रहा
लोग पूछते हैं मुझसे तुम सफ़र में क्यों हो,
वो जो जलते जलते बुझ जाते हैं
मुझसे पूछते हैं तुम बुझते क्यों नहीं हो,
मैं आहिस्ता आहिस्ता साथ निभा रहा था
मगर वो पूछते हैं तुम साथ चलते क्यों नहीं हो,
क्या कहूं किस कदर परेशान हूं मैं
सब पूछते हैं मुझसे तुम कुछ कहते क्यों नहीं हो,
मैं तो लिख दूं पूरी दास्तां अपनी
मसला ये है कोई समझने वाला भी तो हो।-
सफलताएं त्याग मांगती है
समर्पण और निरंतरता अनिवार्य है,
जीवन के हर मोड़ पर हर रिश्ते में
मैंने बस यही तो किया हैं..
फिर क्यों सब जानते समझते हुए भी
मैं यहां हार जाती हूँ।
क्या मेरे हिस्से की सफलता की
मैं हक़दार नहीं,
या रह जाएगा बस इंतज़ार ही?-
मेरा एक हिस्सा मर रहा है
तुमसे बात करने के लिए
और दूसरा हिस्सा कहता है
अब बहुत हुआ भूल भी जाओ उसे,
इन दिनों मैं बहुत कमज़ोर पड़ रही हूँ
ऐसा लगता है अभी नहीं कहा तो
ये बातें ही नहीं मैं भी ख़त्म हो जाऊंगी
और कह दिया ग़र तो
खुद के नजरों में ही गिर जाऊंगी।-
घर छूटता है तो क्या होता है,
मैं अक्सर सोचती हूं कि
अधिक कठिन क्या है
घर का छूट जाना या
घर में होते हुए भी टूट जाना?-