सारी दुनिया को हुनर अपना दिखाने लगे हो
सुना है किसी और को अब गुनगुनाने लगे हो
बेहतर हो गयी है तबीयत तुम्हारे इश्क़ की
खूब बेहतर से नज़्में अब बनाने लगे हो
बा-कमाल तो था तुम्हारा सबकुछ मुझ तक
अब तो हर तालियों पर खिलखिलाने लगे हो
बारिश भी रातों के साथ अब नज़र नहीं आती
तुम भी पराये से आजकल पेश आने लगे हो
कुछ मेरी ही होगी वफ़ा से रुस्वाई शायद
देखा है अब तुम ज़्यादा मुस्कुराने लगे हो-
"जज़्बातों को अल्फ़ाजों में पिरोना सीख लिया है... " 🖤
आँखों को धूप अब बुलाती कहाँ है
तेरी यादें तुझ सा सुलाती कहाँ है
तिश्नगी ख्वाबों में तेरी आई है अभी
तबस्सुम अब मगर ठहर जाती कहाँ है
ख़िज़ां में दरख़्तों को अक्सर तकती है
ग़फ़लतों की वजह वो बताती कहाँ है
सफर-ए-ज़ीस्त में महज सिफ़र है बचा
लहज़ा इखलास का वो दिखाती कहाँ है
बा-दस्तूर रह गया माज़ी का शायद कुछ
आज़ार लफ़्ज़ों से अपनी सुनाती कहाँ है-
इक बस इसी ख़्याल से टूट गया दिल
हर ख़्याल में तुम आ गए
तुम्हें मेरा ख़्याल क्यों नहीं आया-
कुछ मेरी भी नही थी ज़ब्त-ए-अलम
कुछ तुम भी समझ लेते
कुछ बात अलग होती...-
रखा रह जाता है ग़म किसी लाश की तरह,
हर किसी को याद करने से
हर कोई वापस नहीं आता!-
बिख़र के भी मगर वो चलता रहता है
ये जज़्बात है गिरता संभलता रहता है
टूटने का सिलसिला पुराना है ऐ दिल
कुछ ना कुछ ज़ीस्त में खलता रहता है
परवाने को आकर बुझाना तो है उसे
इंतज़ार में मगर चराग़ जलता रहता है
शिरीं नहीं मेरे लफ्ज़ न ही शौक़ है वैसे
ज़हर तजुर्बों से जुबां पे फिसलता रहता है
वो वफ़ा का मुनकिर मैं अयां-ए-दिल्लगी
चंद साँसों में ख्व़ाब यूँ मचलता रहता है-
आजकल मन भी कुछ उदास रहता है
कौन ही जाने वो किसके पास रहता है
रास्ते थक जा रहे मंज़र की तलाश में
आँखों में बस उसका एहसास रहता है
तबीयत ढूंढ रही इक तबीब उस जैसा
परछाई उसका चेहरा-शनास रहता है
कोई मुकम्मल भी तो तासीर नहीं अपनी
ज़हमत हमेशा ही आस - पास रहता है
हसीं कुछ क़यामत से भी कम नहीं वो
बस ज़हर का ज़ेहन पर लिबास रहता है-
किसी हादसे के दर्द से उभर गए हो तुम
कोई हादसा ही आँखों को अब भी सोने नहीं देता-
इक बस उसी के जाने से बहोत रोया है दिल
इक बस वही कहता था तुम रोया मत करो-