थोड़ी सी जो आंच लगी सब, बे - सर्फ़ा हो जाता है
शग़फ़ सतेह ना होने पर ग़म, इक-तर्फ़ा हो जाता है
एक कमाई थे तुम मेरे, एक तुम्हीं मेरे हिस्से थे
एक अंदेशा खोने का सब, सर्फ़ा सर्फ़ा हो जाता है-
"जज़्बातों को अल्फ़ाजों में पिरोना सीख लिया है... " 🖤
समंदर भी कुछ हालातों में ठहर जाता है
खोखला हो तो इंसां गमों से भर जाता है
उसको सुनाओ दास्तां कैसे इक शख़्स भी
बहोत मर्तबा टूट जाए तो मर जाता है
चुन चुन कर अपने टुकड़ों का शोक मनाते
अज़ीयत खु़द टुकड़े-टुकड़े में बिख़र जाता है
दिलासे हि है, जो है, जैसी है, सारी ही बातें
ज़्यादा रोशनी से भी तो शख़्स निख़र जाता है!
कहो ना जिसके आँखों में किनारा नहीं होता
वहाँ ढूबा वफ़ा-ए-शख़्स फिर किधर जाता है!-
ये सितम है करम है दुखन है की क्या है
तुम मेरे भी नहीं हो मेरे इतने हो कर-
नशा कहिये, बुरा कहिये, या जाम कहिये
कहिए कुछ भी मगर उसे हमारी जान कहिये-
हमारी मोहब्बत ख़याली क़यास होगी
होठों से हंसेंगे, आँखें उदास होगी
मुख़्तसर सही, वस्ल की रोज़ ग़र होगी
वो वस्ल तो होगी, पर बे-हवास होगी
तुम्हारे हक़ का हिस्सा धुंधला होगा ..
अब बातें कहाँ, महज़ इल्तिमास होगी
मुसलसल आँखों में इंतज़ार रहे भी क्यों
फ़हम उसकी कहाँ हक़-शनास होगी
मुझे सहरा बनाकर मशहूर हो गया..
अब दरिया मिल जाये तो भी प्यास होगी-
जा-ब-जा ये बदन रखा रह गया
बाद उसके सुख़न रखा रह गया
हम तो सारे ज़माने में भागे गए
लौटने पर थकन रखा रह गया
रात चश्म-ए-सियाह भिगाती गयी
ख़्वाब में भी मिलन रखा रह गया
अब न खोने को कुछ उसके लिए
हिज्र का वो दुःखन रखा रह गया
तौक़ बन के पहन सकूँ सोचा जिसे
बनके अब वो क़फ़न रखा रह गया-
उदास फ़ज़ा है इतना अकेला मत कर
मुझे ख़त्म कर दे, अधूरा मत कर
तू ग़म-शनास है, ज़ख़्में जानता है
ना-शनास-ए-ग़म पर भरोसा मत कर
तीरगी में आ , बैठी हूँ, बता मुझे
बज़्म में तालियों पर तमाशा मत कर
मेरी चोटें गहरी है, दिखाई नहीं देती
तू सतही बातें कर इसे कुशादा मत कर
ये मोहब्बत वाले भी तन्हा-रवी है अगर
तो तू बिछड़ जा लौटने का इरादा मत कर-
ज़ख़्म-ए-निहाँ ने आँखों में चाहत नहीं छोड़ी
मेरे खा़तिर किसी ने कोई ज़ुल्मत नहीं छोड़ी
वो नज़रों से उतारा गया अजीज़ था मेरा
नए रग़बत की उसने मगर आदत नहीं छोड़ी
फ़रामोशी की माफ़ी मैं कैसे देती उसे भला
उसने चाहना तो छोड़ा मुझे,मोहब्बत नहीं छोड़ी
ये जो इबादत सिखाने वाले है इनको कहना ज़रा
उसने मरता छोड़ा था मुझे मैंने इबादत नहीं छोड़ी
इसे ही कहते होंगे गमों की तिजारत शायद
हमने उसे नहीं छोड़ा और उसने दौलत नहीं छोड़ी-
मेरे रास्ते तबाह है , मेरी ज़िन्दगी के चराग से
तू कुछ पलों का है रहगुज़र, तू मंज़िलों का ख़्याल कर-