मसले, मशक्कत, लफ़्ज़ों का, ज़हर वहर और सब
मौत नहीं, काफ़ी जुल्फों का, कहर वहर और सब
सुर्ख शबनमी होंठ हैं और , मलमल शाम है वो
दूर से खारिज़ सबकी बातें, नज़र वज़र और सब
संदली खुद हुस्न है जिसका चाँद सितारे आँखों में
सामने उसके कहने को बस , अगर मगर और सब
मख़मली अल्फ़ाज़ जिसके, शाद जिसकी परछाई
फीका सारा हर्फ़ , है फीका , असर वसर और सब
खूब क़यामत कह दूँ या कहूं खुदा की चाल कोई
ख़ाक हो गया सामने उसके, शहर वहर और सब-
"जज़्बातों को अल्फ़ाजों में पिरोना सीख लिया है... " 🖤
ना जाने कितनी दफ़ा आईने से मुस्कुरा कर गुज़रा
ना जाने कितनी मर्तबा वो रो कर सोया होगा-
ख़बर तो यार को मिरा आया ही होगा
फ़िज़ाओं ने हाल मिरा बताया ही होगा
इंतज़ारी ऐसी की तस्कीन नहीं इक पल
इज़्तिराब से वो भी घबराया ही होगा
उसकी रग़बत में शामें हैं गुजरी कई
फ़ुर्क़त ने उसे भी रुलाया ही होगा
मात भी तबाही ने बहुत क़रीब से दी
ग़ालिबन वो मिरा हमसाया ही होगा
वो नज़र में नहीं , आजकल मिरे
किराये का दिल मगर लाया ही होगा-
ज़र्द आँखों को उसकी नज़र काफी है
हर काविश में उसकी बसर काफी है
दफ़अतन हो गया सब उससे वाबस्ता
उसका तो मुझ पर असर काफी है
वो छू दे मशिय्यत को अब ग़र मिरे
अधूरा ही हो, अब मगर काफी है
कामराँ ना हो पाऊँ मोहब्बत में ग़र
वो लबों से पिलाये, ज़हर काफी है
न हुई कोई जुंबिश और दिल ले गया
उसका मिरे दिल पे कहर काफी है-
बख्श़ दो मिरे जज़्बातों के बचे कुछ लाशों को
हर त्रासदी पर सुनो तालियां नहीं बटोरते-
मैं उसके ख़त अबतक रक्खे उसको याद करती हूँ
मैं उसके दूर रहने की फ़क़त फरियाद करती हूं
खुदी से दूर जाने का ये तर्ज़-ए-सितम कैसा
ग़म-गुसार के ज़िक़्रों पे बस इरशाद करती हूँ
कू-ए-यार से मेरा अब वास्ता हो गया फीका
जुस्तजू उसकी करती हूँ गमें आज़ाद करती हूँ
चाक-ए-जिगर ऐसा के मरहम थक गया लगकर
पुराने दर्द का अंदर ही खुद के जिहाद करती हूँ
घिरी दीवारें अक्सर पूछती है मौन क्यों है वो
फिर झूठ कहती हूँ फिर उसकी मुराद करती हूँ-
इस शहर में उसका मकान नहीं है अब
इस गली से गुज़रता वो इंसान नहीं है अब
परछाई भी जिसकी अलग होते नहीं देखी
ज़िन्दगी में मेरे उसका निशान नहीं है अब
मुझे लिखने से जिसकी आँखें हंसती थीं
मेरी तलाश में खै़र वो अक्शान नहीं है अब
नजमें मेरी सुनकर जो मुस्कुरा उठता था
मेरे लफ़्ज़ों पे उसका आसमान नहीं है अब
दास्ताँ-ए-मोहब्बत का बस उसूल है इतना
सब हो हासिल इश्क़ वो सामान नहीं है अब-
मेरी कसम-ओ-वफ़ा का लिहाज़ रखना
दिल ठहर जाये जहाँ
उससे मोहब्बत का रिवाज़ रखना-
कोई शौक कोई गम कोई डर पाल लो
मोहब्बत से बेहतर ज़हर पाल लो
अज़ीयत से कहाँ है गर्दिश-ए-अय्याम
किसी किल्लत का दिल पे कहर पाल लो
मुक़ाबिल है सब कुछ दुनिया जहाँ से
तबाही का रक़्स-ए-शरर पाल लो
शबब क्या है किसका किसे है पता
शबब ना हो जिसमे नज़र पाल लो
दोज़ख़ है आखि़र नसीब-ए-नज़र
अश्कों को राह -ए -गुज़र पाल लो-