ऊन सावलीचे खेळ लपंडाव तुझा माझा,
चाहूल ओळखून घे, इथे खोटे चेहरे आहे...!-
कहते हैं तू मां की आंखों का तारा है,
बस, आंखे होंठ पिता जैसे चेहरा उसका सारा है...!-
वो कहके गये तुमने दिये हर जख्म
अभी भी तप्ती हुई आग लगाते हैं,
हम तो उनसे अब शिकवे गीले भी नहीं
रखते जो प्यार में भी दाग लगाते है...!-
नको चंद्र तारे सख्या,
तू साथ तेवढी मजला दे....!
माझा दिवस तूच आहेस,
सुखाची रात तेवढी मजला दे...!-
अंधाराचे सावट, दुःखाचा प्रवास ही खडतर
तुझ्यासवे सुखाचा दीप जळावा *निरंतर...*
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कुछ इस तरह से है तू अपनी मुलाकातों के किस्सों में,
कभी आंसू आए आंखों से कभी मुस्कान मेरे हिस्सो में...!
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ये रात भी कभी कभी इतना खौफ दिखाती है,
सुकून भरी नींद को भी डर के हवाले कर जाती है..!-
एक ही तो वजह है खुश रहने की
जिससे जी भर आता है..!
जब पापा बोले मेरा बच्चा अंधेरेमे भी
जुगनु- सां चमचमाता है..!
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अजीब सा प्यार है हमारा,
खुश रहने का वादा कर लिया..... किसी और के साथ..।-