Ankita Bharti   (Ankita....)
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Joined 20 March 2020


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5 NOV 2021 AT 23:34


दीए तो इस बार भी जलाओगे
सितारों की रोशनी से घरों को सजाओगे
पर एक शख़्स जो सालों से अंधेरे में बैठा है तुम्हारे अंदर
उसे कब जगाओगे
एक दीया उम्मीद का आख़िर कब जलाओगे
अंदर से हैं बुझे हुए, बाहर से जगमगा रहे
आँखों में है टीस मगर होठों से मुस्कुरा रहे
उदासी की बाहों में सिमटकर,
ख़ुद को महफ़ूज बता रहे
खुशियों से दामन छुड़ाकर
गम को गले लगा रहे
इस दोहरेपन का नक़ाब कब उतारोगे
ख़ुद से ख़ुद तक जाने का रास्ता कब निकालोगे
एक दीया उम्मीद का आख़िर कब जलाओगे
अपने अंदर फैले अंधेरे को आख़िर कब मिटाओगे
आख़िर कब मिटाओगे....!
- अंकिता.....


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3 JUN 2021 AT 23:57

मैं अक़्सर चीज़ों को रखकर भूल जाती हूँ
मुझे याद नहीं रहता दूध का उबलना और छत से कपड़े उतारना
कितनी किताबें मैं बसों और ट्रेनों में भूल आयी
वो नीली कुर्ती की मैचिंग वाली चूड़ियाँ भी खो गयी मुझसे
मुझे आज भी अपने कान की बालियों को संभालना नहीं आया
ज़रूरी से ज़रूरी चीज़ भी खो जाती है मुझसे
पर अगर मैं तुमसे कहूँ कि,
तुम्हारे दिए हुए ख़त, तुम्हारा रुमाल और तुमसे की हुई वो तमाम बातें मैंने अबतक महफ़ूज़ रखें हैं
तो तुम ये मान लेना कि
तुम्हारे लिए मेरा प्रेम अनंत है...!
- अंकिता...

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27 MAY 2021 AT 22:53

हमने प्रेम की अलग-अलग प्रकार से व्याख्या की हैं, इसकी कई उपमाएं दी हैं, उदाहरण दिये हैं। हमने प्रेम को परिभाषित करने की कोशिश में इसे बहुत जटिल बना दिया है, जबकि प्रेम तो नवजात शिशु सा सरल, कोमल व मासूम है। जिसे भाषा की समझ नहीं होती, जो नहीं कर पाता भेद अपने और परायों में, जिसे नहीं होता किसी वस्तु का मोह, वो तो केवल महसूस करता है एक भावपूर्ण स्पर्श, ममत्व भरा आलिंगन, जो केवल तन को नहीं आत्मा तक को छू जाए। ऐसा स्पर्श पाकर प्रेम मुस्कुराता है ठीक वैसे ही जैसे शिशु मुस्कुराते हैं नींद में...!
- अंकिता....

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26 MAY 2021 AT 23:15

मैं नहीं जानती कि दिन का कौन सा पहर उत्तम है सूर्य को अर्घ्य देने के लिए
मैं नहीं जानती कि भगवान शिव को कौन से पुष्प अधिक प्रिय हैं
मैं नहीं जानती कि कौन से रंग के वस्त्र माँ दुर्गा को भाते हैं
मैं ईश्वर को प्रशन्न करने के तरीके और उन्हें पूजने के नियम नहीं जानती,
पर मेरा मानना है कि जब ईश्वर हमसे ख़ुश होते हैं तो वो हमें प्रेम से नवाज़ते हैं
तुम्हारा मेरे पास होना इस बात का प्रमाण है कि मेरा ईश्वर मुझसे बहुत ख़ुश है....!

- अंकिता....

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11 FEB 2021 AT 23:48

जमाने में वादों का शोर बहुत है,
तुम बस ख़ामोशी से निभा जाओ तो जाने....!

- अंकिता....

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27 JAN 2021 AT 21:00

आप सा न कोई था, न कोई आएगा
कहकर 'बूटा सिंह' मुझको, अब नहीं कोई बुलाएगा
जहां भर की मेरी परेशानियां,
अब किसे बताऊंगी
करते हैं सभी तंग मुझे, ये शिकायतें किसे सुनाऊंगी
ज़िद करके बार-बार, अपनी बातें किससे मनवाऊंगी
आप जैसा न कोई मनाएगा,
जो मैं अब रूठ जाऊंगी
ख़ुद को करके इतना दूर हमसे, क्यों ऐसे सताते हो
बाबा! आप बहुत याद आते हो...
आप बहुत याद आते हो....!
- बूटा सिंह....

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25 JAN 2021 AT 20:54


आजकल चाँद मुझसे नाराज़ सा रहता है,
मैं छत पे जाती हूं, तो वो बादलों में छिप जाता है
और भला वो नाराज़ हो भी क्यों ना ,
पहले मैं बस उसे निहारा करती थी
पन्नों पे भी अक़्सर उसे ही उतारा करती थी
पर, अब वो तुझसे ज़रा जलने लगा है
तू उसकी नजरों में खलने लगा है
जबसे मेरे ख़यालों में तू बसने लगा है
वो मुझसे, तेरी शिकायतें करने लगा है
पर सच कहूं,
मेरा मन भी अब मचलने लगा है
चाँद से ज़्यादा आँखों को तू जो जचने लगा है
देखती हूं तुझे तो उसे भूल जाती हूं
और, जब-जब देखूं चाँद को
उसमे भी तुझे पाती हूं
सोचती हूं अब कि उसे मनाऊं कैसे
वो है ख़ास अब भी मेरे, ये उसे समझाऊं कैसे
इश्क़ तो यक़ीनन दोनो से है मुझे
इस बात का यकीं उसको दिलाऊं कैसे,
सोंचती हूं अब कि उसे मनाऊं कैसे....!
- अंकिता....

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16 JAN 2021 AT 20:14

हर रोज़ अपने ही घरों में, अपनों के द्वारा, तिरस्कार झेलती स्त्रियां मान लेती हैं ख़ुद को एक खंडित मूरत। जिन्हें पूजा नहीं जाता, और न ही दिया जाता है उचित सम्मान। उन मूर्तियों से घर को सजाया नहीं जाता बल्कि उन्हें रख दिया जाता है, टूटे-फूटे कुर्सी-मेज़, फटे पुराने कपड़े और रद्दी अखबारों के साथ घर के किसी कोने में। वो मान लेती हैं ख़ुद को कोई बेजान-बेमोल वस्तु जिसकी भावनाएं मर जाती हैं, जज़्बात ख़त्म हो जाते हैं, और दिल पत्थर हो जाता है। ऐसी स्त्रियां शिक़ायत नहीं करतीं बल्कि बहुत ही सहजता से स्वीकार कर लेती हैं ऐसे जीवन को अपनी क़िस्मत मानकर। ऐसी स्त्रियों के सामने दुख नतमस्तक हो जाता है और ख़ुद ईश्वर भी स्तंभ रह जाते हैं अपनी इस अद्भुत रचना पर....!
-अंकिता...

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8 JAN 2021 AT 20:29


बड़ा सुलझा सा इश्क़ है मेरा, पर वो समझ न पाया
वो हमारे बिना ख़ुश था और हम....उसके लिए....!

- अंकिता...

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6 JAN 2021 AT 13:09

शादी का अर्थ नई जिंदगी का आरम्भ जरूर है, पर पुरानी जिंदगी का अंत नही.....!
-अंकिता....

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