Ankit Srivastava   (Ankit)
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Thinker||Reader||Believer ❤️
Sometimes ✍️
Joined 7 April 2019


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Sometimes ✍️
Joined 7 April 2019
10 JUN 2020 AT 17:57

वह एक कुसुम ही तो थी 'अंकित'
तुमने तोड़ दिया
देखो ना, अब सूख गई।

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4 JUN 2020 AT 13:43

घूमाकर नजरें चारों दिशाओं में
कहीं रुक कर, कहीं देखकर
आंखों में छुपा लेता हूं किसीको
दबा कर पलकें धीरे से
बंद कर देता हूं उसका, आना-जाना कहीं
फिर भी ये बंदिश उसे घुटन नहीं लगती।

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7 MAY 2020 AT 18:18

तुम्हारी गलतियां भूलाई नहीं जायेंगी मेरे दोस्त
सज़ा दिया जाएगा मगर थोड़ा-थोड़ा हर रोज़।।

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2 MAY 2020 AT 16:17

तुम्हारा महबूब कातिब है जाना...
मोहब्ब्त ऐसी करना कि मलाल न रहे।

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18 MAR 2020 AT 18:41

नफ़रत लिख कर दीवार पर
वो हर ईंट से प्यार करती है।

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15 MAR 2020 AT 12:53

अगर मंजिल एक है तो मुलाकात रास्ते में ही होगी।

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2 MAR 2020 AT 18:33

आसमानों में यहां आग है 'अंकित'
तुम्हारे गांव में तो आज भी तारें दिखते हैं।

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20 FEB 2020 AT 19:43

एक सर्द रात, दो गर्म रुह
थोड़ा दूर, ज्यादा पास
शिथिल देह, तड़पता मन
रुकते हैं कभी
टाल-टाल कर मिलतें हैं कभी
महसूस एक-दूसरे को
करने के लिए
फिर भी नहीं मिलती
एक की गेसुओं में
दूसरे की उंगलियां।
शायद कहीं तो रूकना है उन्हें
जैसे एक सिर्फ पानी
और एक ठोस पात्र कोई
जहां एक खुद को
इकट्ठा कर दूसरे में रुक जाए
लेकिन नहीं
हवाएं भी टकराकर
देह से, पार हो जातीं हों जैसे
और दोनों पानियों सा
बहते रहते हैं एक-दूसरे में,
एक-दूसरे के पार,
क्षितिज तक।।

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9 FEB 2020 AT 15:02

तुम्हें खोने से इतना डरता हूं मैं
कि तुम्हारे नाम को भी बचाकर रखता हूं मैं
शिकन ना आए तुम्हारे पेशानी पर भी
खुद को इतना खर्च करता हूं मैं।

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8 FEB 2020 AT 15:00

बहुत खूबसूरत था सहर बिना आफ़ताब के
वो आया तो जैसे आग लग गई पूरे शहर में।

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