बस रूदन करूं,ना कर्म करूं,क्या रूदन ही करना काफी है?
मैं हूं कायर सा वीर भले ही,विजय अभी मेरी बाकी है,
आघात करूं खुद के तन पर,छवि बना दी रक्त-नयन पर,
ध्वनि में मैंने हुंकार भरी,अब कलम ही मेरा साथी है.
भविष्य है फल मेरे वर्तमान का वर्तमान में मैं काम करूं,
कुछ करें कामना मेरी हार की उनकी कामना नाकाम करूं,
इतिहास हो जो अब फर्क़ नहीं बस इस क्षण व्यर्थ न काम करूं,
जब तक न जी लूं मैं स्वप्न अपना,इक क्षण भी न विश्राम करूं..
कल करता था,कल करूंगा भी,आज भी जारी है प्रयास निरंतर,
पुरखों से ही तो सुना है मैंने,बूंद-बूंद जुड़ बने समंदर,
हर पड़ाव पे स्वीकार हार,सीख लगती जिसको ये हार
होता वो ही सशस्त्र सिकंदर,
मेरे लिए तो मेरा मित्र कलम, मेरा शस्त्र यही, यही है खंजर,
धारण कर लूं ग़र एक बार
विपदा भी कहे मुझे कलम-सिकंदर...
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