ज़िन्दगी
उसे न ज़िन्दगी से ,न ज़िन्दगी को उससे कोई आस रही
सब चल दिए एकदिन मगर,ज़िन्दगी ही उसके पास रही
उसने थोड़ा ज़िन्दगी को खोया ,ज़िन्दगी से हारा भी है
उसे पता चला ज़िन्दगी ही खेल ,ज़िन्दगी सहारा भी है
ज़िन्दगी खोकर ,ज़िन्दगी ही पायी जाती है
ज़िन्दगी दूर हुई ,ज़िन्दगी ही पास आयी जाती है
एक ज़िन्दगी में कई ज़िन्दगी निभाई जाती है
ज़िन्दगी खर्च हुई ,फिर ज़िन्दगी ही कमाई जाती है
ज़िन्दगी अक्सर हमने चेहरों को बनाया है
ज़िन्दगियों ने ज़िन्दगी भर बहुत सताया है
कहीं खामोश चराग़ सी , ज़िन्दगी जलती है
कहीं पिघलते सूरज सी ,ज़िन्दगी ढलती है
खेल,खिलाड़ी,दर्शक ,इनाम ,ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी है
सवाल,जवाब,हक़ीक़त ,ख्वाब ,ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी है
ज़िन्दगी रहेगी पास में ,ज़िन्दगी भर रोइये
फिर ज़िन्दगी को, ज़िन्दगी में ,ज़िन्दगी भर खोजिये ।
-अंकित-
I turned up framing something .
चिड़ियों और फूलों का झुंड
आपस मे मानो फेरबदल
करलेते होंगे ,ऐसा मैंने
एक सुहावने दिन गौर किया
रंग ,आकृति, गठन को ध्यान देने
पर मुझे आभास सा हुआ कि
चिड़िया ,खुली पंखुड़ियों के साथ
उड़ता रंग बिरंगा फूल ही तो होती हैं
और एक फूल शायद, पंख
सिकोड़कर संकुचित बैठी चिड़िया
चिड़ियाँ शायद वह फूल होते होंगे
जिनके आंख ,चोंच और पैर होते हैं
या यूं भी कह सकते है कि फूल ,
उन चिड़ियों की श्रेणी है ,जो सदियों से
सो रहे है निरंतर ,और उनके अगल
बगल वनस्पति चली आती है
क्योंकि जब कुछ नही आता
तो आते है घांस और पौधे ।
-अंकित
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हम अपना मौजूदा वर्तमान दिन ,पिछले दिनों की यादों और आने वाले दिनों की बेहतरी की कामना में जीते है ,हमारे मौजूदा दिन में वर्तमान ही सबसे कम मौजूद होता है !
आश्चर्य की बात यह है कि ,जो बीते दिन है ,वो भी कभी वर्तमान थे,और हम कुछ नही कर पाए ,और आने वाले दिन कब वर्तमान होकर भूत हो भी जाते है ,हमे आशंका ही नही रहती ।-
कुछ स्मृतियाँ ,स्थान और स्पर्श
अंत मे विच्छिन्न कर देनी चाहिए ,
जैसे एक वृक्ष पृथक कर देता है सबसे मीठा फल
और सबसे सुगंधित पुष्प ,किसी संध्या
जैसे बुद्ध छोड़ देते है अपना
भौतिक संसार और परिवार
जैसे एक मृत शरीर के भभूत को
छोड़ दिया जाता है नदी तट के किनारे
जैसे रत्नाकर छोड़ देता है वस्तुएं
बालू के तट पर ,अनिश्चित समय अवधि के लिए
जैसे जलधर छोड़ देता है बूँदों को
स्वछंद ,एक निश्चित भार के बाद
जैसे नेत्र छोड़ देते एक ढुलकता
अश्रु आपके गालों पर ,किसी बेला
जैसे एक वीणा छोड़ देती है अपनी
सबसे मधुर ध्वनि ,झींकृत होने पर ।
- अंकित
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मैं ये कभी नही कहूँगा ,की मुझे हार ,जीत से ज़्यादा प्रिय हैं ,लेकिन ये अवश्य मानता हूं ,की मुझे हार ,जीत जितना ही प्रिय हैं, जीत आपको पुरस्कार दे जाती है,लेकिन हार देती है ढेर सारी संभावनाए ,हार एक इंसान जैसा है ,जो कसकर आपका हाथ जकड़े रखता है ,और आपको इस जकड़ से जल्द से जल्द छूटना होता है ,और एक दिन अचानक हार आपको खुद ढकेल देती है ,जीत नाम के व्यक्ति के पास ,और आप ग़ौर करते है कि जीत थोड़ा लापरवाह सा व्यक्ति है ,वह हार की तरह आपका हाथ पकड़ता ही नही ,जकड़ना तो दूर की बात है,आपको कमी अवश्य खलती है ,और आप पीछे मुड़कर उसे देखने का प्रयास भी करते है ,लेकिन वह आंखों से ओझल हो जाता है ,शायद यही कारण है ,की जीत के बाद मनुष्य का पहला प्रफुल्ल क्रंदन और खुशी इस वजह से नही होती कि उसका भविष्य सवर गया,बल्कि इस वजह से की उसने भूत में इस क्रिया के लिए कितना अधिक परिश्रम किया था ,और सबसे अचंभित करने वाली बात ,वह भविष्य में आने हर सफलता की कहानी में ,अपने भूतकाल की हार की गाथा ज़रूर बतलाता है ।
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"जीतने "का जज़्बा और" हार नही मानने"
का जज़्बा दो अलग अलग मनोभावना हैं
उदहारण स्वरूप 100 मीटर दौड़ में
"जीतने "का जज़्बा काम आता है
लेकिन एक मैराथन में "हार नही मानने" का जज़्बा
ठीक उसी प्रकार सफलता की दौड़ में
तो निश्चित रूप से "जीतने "का जज़्बा आवश्यक है
लेकिन जीवन की दौड़ में सफल होने के लिए
"हार नही मानने" का जज़्बा ज़रूरी है ।
-अंकित-
अत्यंत आंतरिक व्यथा के लिए रुदन काफ़ी नही,
इसी कारण ईश्वर ने मुस्कुराने की कला सबको दी है ।
-अंकित-
Life is a well carried out process of natural sublimation .The people you meet are all carrying out the process of sublimation ,you meet them in a state of some physical solid form ,as the time passes ,they diminish into nothingness leaving behind aroma of beautiful memories of past ,and then comes a time they vanish completely , leaving behind a scent which stays with you ,for a long duration ,and by the time you get habituated with this process of life ,the same works on you ,and either you turn into ashes ,with a gust of strong wind carrying you to eternity ,or you became a part of land and turn into fertility .
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आपका जन्म सिनेमा के लिए नही ,बल्कि सिनेमा का जन्म आप जैसे कलाकार के लिए हुआ है ,पर्दे पर ज़िन्दगी को उतारना ,और पर्दे पर ज़िन्दगी को ही बेपर्दा कर देना दो अलग अलग चीज़े है ,आपको ज़िंदगी बेपर्दा कर देने में महारत हासिल थी ,गलती हमारी है ,पर आपकी कला का भी दोष है ,हाँ ,मैंने सही कहा ,आपकी कला है दोषी ,कारवां "देखने के बाद "शौकत" याद रह गया "इरफान "को भूल गए ,"हिंदी मीडियम" देखा तो "राज "याद रह गया ,"इरफ़ान" हम फिर आपको भूल गए,"अंग्रेज़ी मीडियम" देखी तो चम्पक याद रह गया ,इरफान जी आपको भूल गए ,"लंच बॉक्स" का साजन याद रह गया ,हम आपको भूल गए,हर किरदार को इतना ज्यादा सजीव किया है आपने ,की आप याद ही कम आते थे ,ये आपकी कला है ,ये सामान्य हो ही नही सकता ,जहाँ एक कलाकार समाज को इंसान देता जाए ,हर एक सिनेमा के साथ ,एक इंसान जो हमारे साथ घूमता टहलता रहता है ,आप अपने किरदारों में सदैव अमर रहोगें ,दुख इतना अत्यंत है कि इस लेख के अंत में मुझे "क़रीब क़रीब सिंगल" में गाये हुए "बड़े अच्छे लगते है "के आपके बोल याद आजाते है और मेरी आँखें नम हो जाती है ।
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दुनिया को हमेशा
सवालों के जवाब
खोजना सिखाया गया है
इतना ज्यादा ,की हर
इंसान एक चलता फिरता जवाब है
सही जवाब ,गलत जवाब नही
उसका वर्ज़न ऑफ जवाब ,
लोग अब सवालों -जवाबों में नही
जवाबों -जवाबों में बात करतें है
ज़रूरी अब यह है ही नही
की जवाब खोजा जाए
ज़रूरी यह है कि सवाल खोजते है !
हर जवाब का सवाल जानने
का प्रयास किया जाए
दुनिया अबतक जवाब ही खोजते आयी है
अब बारी है दुनिया सवाल खोजे ,
ऐतिहासिक ही कहा जाएगा
कि पहली बार दुनिया मे
सवालों की तलाश होगी ,
कुछ सच्चे सवालों की
विचार करियेगा और सोचियेगा !-