तुमसे प्यार में जीत जाऊं
अभी इतना अमीर नहीं हूं
तुम मुझसे प्यार करने लगो
पर मैं... कश्मीर नहीं हूं
मैं चाहता हूं ताउम्र की सजा
अबतलक तेरा असीर नहीं हूं
मुझसे राय सलाह मत लेना
राजा हूं, वजीर नहीं हूं
आंखों से क्लीन बोल्ड कर दूं
आशिक हूं , ज़हीर नहीं हूं
तुझसे प्यार मांग रहा हूं
प्यार में हूं... फ़कीर नहीं हूं
अंकित ।
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तेरी आंखों में ख्वाब बनके पलता मैं
तेरे चेहरे पे हर रोज़ गुलाल मलता मैं
जब थक के ठहर जाती तू बीच रस्ते में
तेरी खातिर आखिर मंजिल तक चलता मैं
तू ना कहती कुछ, मैं भी चुपचाप रहता
तू छुप जाती , तेरी गली में टहलता मैं
तू मुझे पागल कहती तो सुकून मिलता
तू मुझे शराबी कहती तो संभलता मैं
हाथ में हाथ रख के ये ना पूछ मुझसे
तू ना होती तो कैसे फिर बहलता मैं
मेरी बचपन से ख्वाहिश थी तुझे पाने की
तमाम दुनिया को अखरता , खलता मैं-
मैं अपनी डायरी से बात कर रहा था
या शायद तुम्हे याद कर रहा था
मेरी कलम , वो पन्ने मुझसे मुंह फेरे हुए थे
बोले , बड़े मतलबी हो तुम मिश्रा
जब दुनिया से मन भरा
तो चले आए लिखने ख्याल
पहले तो रोज आते थे
सिरहाने रहती थी ये डायरी
एक दौर वो था जब
मैं लिखते लिखते रात कर रहा था
मैं अपनी डायरी से बात कर रहा था ।
मैं ख्वाब था किसका कहा कब क्या पता
वो इश्क था तो कर लिया था राबता
अब चांद पर भी यार दिल कितना लिखे
वो वक्त ही कुछ और था , जब चांद था
अंकित राज मिश्र
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अभी इक सवाल से जूझ रहा हूं
मरने के ख्याल से जूझ रहा हूं
जलाओगे मुझे या बहा दोगे
या जमीन के भीतर दबा दोगे
डर नहीं लगता है ये सोचकर
कि नाम मुझे तब क्या दोगे
जब ठंडा पड़ चुका हूं मैं
सांस चलती है बेफिजूल क्यों
सबके सामने खुश दिखाकर
सबकी आंखों में झोंकू धूल क्यों
मैं भी हूं मोह माया का हिस्सा
बस इसी मलाल से जूझ रहा हूं
अभी इक सवाल से जूझ रहा हूं
- अंकित राज मिश्र --
आजकल चांद पर कम हो... लिखने लगे
बात क्या है क्यों खोए हुए .. दिखने लगे
हमने आंखों को मला और भरम मिटने लगा
तुमको दिल ऐसे बदलने में सनम, कितने लगे?
आखिर ! जानकर करोगी क्या दिन गिनती के
भूले हैं हम भी तुम्हे , लगने थे दिन जितने लगे
और आगे का फलसफा बहा दरिया में
हम हैं पागल , तुमको भी फक़त इतने लगे
और आखिर में क्या शेर कोई अर्ज़ करे
कहां के शायर गर एक जगह टिकने लगे
- अंकित राज मिश्र (हुंकार)
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मुझसे जियादा उसे कोई बद्तर नहीं लगता
अब जिस्म को मेरे कोई इत्तर नहीं लगता
मैं फुर्सत में दिल को आग पर भी सेंक लेता हूं
गरम बस खून होता है, कुछ सर पर नहीं लगता
है किस्मत बाढ़ मेरी , और मैं मिट्टी का छोटा घर
तू चाहे मार दे गोली , तुझसे पत्थर नहीं लगता
मैं अब भी फेंक देता हूं गुलाब खिड़की से हीं उसके
वो भी कूद जाती है , उसे भी डर नहीं लगता
बुरा लगने को तो हर बात से नाराज़ हो जाएं
मगर इक बात अच्छी है , कुछ दिल पर नहीं लगता
मुझे लिखने में मीटर से ज़रूरी जज़्बात लगते हैं
लिखा तो दिल से जाता है , जहां मीटर नहीं लगता
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बहुत नाइंसाफी है
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तुमने मुझे बड़ा होते हुए देखा
मैंने तुम्हे बूढ़ा होते हुए नहीं
तुम्हारे सफेद बाल देखने की ख्वाहिश अधूरी रह गई
तुम्हारे शरीर पे झुर्रियां भी खिल नहीं पाईं
वो बचपन जो चला मेरा अठाईस बरस तक
उसके बाद वो दुनिया कभी फिर मिल नहीं पाई
बहुत गलती की है तुमने ,,छुपाया दर्द बांटा प्यार
तुम्हारे आखिरी वक़्त में भी देखा तुम्हे रोते हुए नहीं
तुमने मुझे बड़ा होते हुए देखा ,,मैंने तुम्हे बूढ़ा होते हुए नहीं
अंकित राज मिश्र
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इश्क़ के अदालत में अपनी हाज़िरी होगी
मैं चढ़ूंगा सूली पर , और तू बरी होगी
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मोहब्बत आसमानी हो रही है
कोई लड़की दीवानी हो रही है
मुझे तो याद कुछ रहता नहीं अब
मेरी सांसें बेगानी हो रहीं हैं
जहां पर इश्क़ करना था सभी को
वहीं पर बेजुबानी हो रही है
हमारा दिल ज़रा दिलफेंक सा है
ये हरकत खानदानी हो रही है
कि सिरहाने में रख के सर को रोकर
कोई लड़की सयानी हो रही है
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दुनिया के नक्शे पर तुम, निशानी को तरसोगे
खून बहेगा बाद में , पहले पानी को तरसोगे
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