Ankit Rai   (अंकित)
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Joined 31 October 2017


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5 JUN 2022 AT 11:22

एकाकी मनन !

हम है आज के युवक, परीक्षित, परिष्कृत, एवं परिमार्जित !

भूल गए सब याद रहा बस - मंदिर वहीं बनाएँगे।
पर बीस कदम पर मदिर है एक वहाँ कभी ना जाएँगे॥

कंठी माला की कौन कहे अब कृत्रिम भजन बजाएँगे।
मन से होती है भक्ति ये सोच के खा सो जाएँगे ॥

एक है ईश सदैव से ही, इस बात पे ज़ोर नही देंगे ।
और तुम हो वैसे हम ऐसे इसमें तन-मन सुलगाएँगे ॥

सुनो अभी भी समय शेष है, इष्ट भजो भजते जाओ,
चरण पकड़ कर शरण गहो आनंद करो या दुःख पाओ ॥

परीक्षितः tested, परिष्कृतः refined, परिमार्जित, redesigned !

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23 FEB 2020 AT 22:37

अंश
ममता धाए माँ धरे ध्यान तब कोमल करुण सुभाषी हों ।
जब आए समर फिर कर प्रणाम नित आयुध के परिभाषी हों ।।

सुत प्रभाव में स्तम्भ सदन का सुत स्वयं तात अनुयायी हो ।
हो स्वभाव से मृदुभाषी, संयमी व स्वाभिमानी हो ।।

और सुता वह जो स्वरूप माता के सनातन रीती की ।
सुता सृजन में स्वयं ब्रम्ह सुता धरातल प्रीति की ।।

एक सुता वह सीता थी और एक सुता थी सावित्री ।
मंत्रारंभ और मंत्र जप में प्रधान है गायत्री ।।

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9 DEC 2021 AT 21:57

छुटकी !

नव जीवन का आरम्भ किया जब परिणय सूत्र में बंधे ।
भोर भयी जब किया विदा थे भारी हृद सब गले रुँधे ॥

चेहरा दीप्त प्रकाशित था अश्रु की आभा भाती थी !
नयन सजल सब भावभीन ना मुख से कुछ कह पाती थी ॥

लेकर अपना कोलाहल बाहों में सिमटे दूर हुई,
दीप सदन का ज्योति नयन की गृह से दूर विलुप्त हुई ॥

देखा जब तक दिखी छवि क्या अद्भुत रूप धरा था उस दिन ।
छोटी बिटिया घर की गुड़िया देवी सी अनुपम थी उस दिन ॥

मैंने देखा ईश्वर को जाते जाते नयनों में उसके ।
सुखी रहे है यही विनय सत चित् आनंद हृदय में उसके ॥

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23 JUL 2021 AT 8:29

प्रिय गुरुवर,

गुरु पूर्णिमा के पावन दिवस पर
प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी
हम अपना आभार प्रकट करना चाहते हैं !

धन्यवाद,
हमारे जीवन को दिशा देने के लिए
हमारे ऊर्जा को दिशा देने के लिए
हमारे कठिन समय में बात करने के लिए ।

धन्यवाद शब्द छोटा है
पर आभार के भाव से भरा है ।
आशा है आप कुशल मंगल हैं !
और सदैव प्रसन्न रहे
यह कामना भी है ।

आपके अनेक शिष्यों
में से एक शिष्य,
- अंकित

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13 JUL 2021 AT 9:11

क्रिकेट खेलने वाला दिन !
दिन की शुरूवात
तड़के हाथ मुँह धोकर निकलने से होती है ।
सुबह शांत मद्धम हवा चेहरे पे थपकी देती है,
मन में आगे होने वाले खेल की अनंत सम्भावनाएँ
और कदम बढ़े जाते हैं ।
तब तक,
जब तक आगे खेल का मैदान नही आता ।

खेल शुरू
जोश हर घड़ी बढ़ता है,
हर ओर से हो हल्ला हर पल कुछ नया..
आशाएँ ! यथार्थ ! रोमांच !

वापसी
का रास्ता और फिर वही मद्धम हवा।
शरीर में होती हल्की सनसनाहट
जो अभी अभी बीते खेल की वजह से है ।
मन शांत है, हार या जीत से फ़र्क़ नही !
एक और सुबह अच्छा क्रिकेट खेलने की संतुष्टि ।
हर जश्न से ऊपर !
क्रिकेट !

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28 JUN 2021 AT 0:50

अभिमन्यु

आज अभिमन्यु चला है आख़िरी गंतव्य को
आया रथ पर पार्थ पुत्र रण में महा विध्वंस को ।

जाए दृष्टि तक जहां पर शत्रु के मेले लगे,
किंतु भय क्या उसको जिसके हरि स्वयं आगे चले ।

वीर अभिमन्यु की आयु बीस से कुछ कम ही है ।
टिक ना पाता कोई चाहे भट विकट कितना भी है ।

व्यूह अंदर व्यूह मन्यु यूँही भेदता जाता था,
चारों ओर से शत्रु पर कोई निकट ना जाता था ।

अंत में जब व्यूह के अंतः पटल पर पहुँचा वो,
आगे जाने राह क्या हो, बाहर को जाना कैसे हो ।

लेके रथ का चक्र फिर सिंह हृद को टटोलता था,
क़िस्में साहस पैर रक्खे मूक मुख ना डोलता था ।

घेर कर मार सभी ने अँतोगत्वा एकसाथ,
एक बालक से लड़े जब सात राजा एक साथ ।

धर्म शून्य थे क्या सभी या सारी ही रणनीति थी ?
सोचने की बात है ये जीत कैसी जीती थी ?

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10 JUN 2021 AT 21:45

#आनंद

एक बड़े से कमरे में बैठे लोग,
जहां कोई किसी को नही जानता ।
एक कमरे में कई दुनिया एक साथ पूरी गति पर हैं ।
सब अपनी धुन में,
सब अपनी व्यवस्था में ।
तभी, कमरे में एक ओर से श्री शब्द चल निकला...
देखते ही देखते सबके मुख में
और सबके हृदय में मधुर गुंजन होने लगा ।
श्री लय पर सबके तन झूमने लगे..
हाथों से हवा में आकृतियाँ बनाते लोग
जो अब तक अकेले थे, साथ हो लिए..
कमरे में जहां शांति थी
अब लयबद्ध गायन है..
कितना अद्भुत ?

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18 APR 2021 AT 23:22

# आधार

भाई, पिछले २५ वर्षों का
हमारा नाता बहुत सुंदर था ।
अब जीवन का अगला भाग
हमें स्वयं ही देखना होगा ।।
कहकर भगिनी
अपने पथ पर चलने को हुई ।

भाई सजल नयन मन ही मन
अंतिम बिदाई देने को हुआ,
पर कुछ बोला ना गया,
गला रुंध गया, बस दोनो हाथ उठा कर
आशीर्वाद मुद्रा में किए और “ अच्छा “ कहा ।

जैसे किसी छत को आधार चाहिए बस कुछ दिन,
दिन भाई के भगिनी के जीवन में भी गिनती के थे ।।

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4 APR 2021 AT 9:27

# और

किनारा छूटता दिखाई पड़े तो
निराश मत होना,
वो एक किनारा है,
किनारे और भी हैं ।

हाँ कोई मिला था कल
सहारा बनने को,
जो उसकी खबर ना मिले तो,
सहारे और भी हैं ।

सत्पथ संयम और सत्य बस
तीन है साथी साथ सदा,
छोर हृदय का अंकित एक है
ओर तो फिर फिर और भी हैं ।

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13 MAR 2021 AT 0:02

# अनुभव

बीते २० सालों के बाद,
एक एक करके बीते लम्हे बेमिसालों के बाद ।

कभी आँखो की चमक
और दिल की मशालों के बाद,
फिर कभी सीने में धधकती आग
पीछे दिल के मलालों के बाद ।

गाँव के चूल्हे की ढिबरी और द्वार की लालटेन के पार,
अपने खेत अपने घाट अपने घर के आँगन पे पार ।

आज, एक पत्र मिला तुम्हारा ।
चित्र था एक उसमें हमारा,
तब तुम कुछ ६ वर्ष की रही होगी, और आगे के दो दांत ग़ायब ।
और जैसे ही तुम्हें अपनी शर्ट में छुपाने बढ़े की...
नींद खुल गयी ।

मेरी गुड़िया, तुम सदैव ऐसे ही प्रसन्न रहो !

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