ठोकरों से गिला वो करें जिनके पैर कमज़ोर हैं
जब मैदान ए जंग में आ ही गए तो फिर घावों से शिकायत कैसी ll-
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भर गया है मन तुम्हारा ,अगर इस प्रेम से ,
दूसरा मन चाहने का भी तुम्हे अधिकर होगा
दोनों स्वयं जब मान लेंगे भूल या बह बचपना
फिर भला कैसे तुम्हारे चरित का प्रतिकार होगा
इस समर्पण राह में कोई भी अब बंधन नहीं है
बांध भी सकते है कैसे अगर अब वो मन नहीं है
मन तुम्हारे लौटने का अंत तक इच्छित रहेगा🤲
अन्य का यहां आगमन सदा ही वर्जित रहेगा 🥺
प्रेम की परिभाषा में तात्विक द्वैत ही अद्वैत है
केबल मुझे ही कामना का नहीं अधिकार होगा
भर गया है मन तुम्हारा, अगर इस प्रेम से ,
दूसरा मन चाहने का भी तुम्हे अधिकर होगा ll-
हर एक उम्मीद से छूट चुके लोग
अपने मन को कैसे समझाते होंगे
"जो कहीं के नहीं रहते " खुदा जाने
वे लोग आखिर कहां जाते होंगे ll-
तुम गरजो तो तरंग की भांति
बिकराल मेघ निश्चित चमकेंगें
तुम शौर्यसुधा को थामे
जहां करोगे इंगित ये मेघ वहीं बरसेंगे
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सूखे हुए हैं फूल उस डालि के सभी,
जिसको चमन की धूप और पानी की जरूरत थी कभी,
जब मुरझा ही गया वो वृक्ष तो फिर
अब उसपे पानी को बहाने की जरूरत क्या है ,
तुम मिटा सकते नहीं नाम मेरा दिल से कभी
फिर किताबों से मिटाने की जरूरत क्या है
अब तो सैर ही करते होगे हवाओं में परिंदों की तरह
फिर नई ज़मीं तलाश के रास्ता बनाने की जरूरत क्या है-
अर्जुन के जैसे मेरे भी , रथ के तुम सारथी बनो स्वामी
नैया मेरी है बीच भंवर, उसको तुम पार करो स्वामी-
वो तुम्हारी गली का सरल रास्ता
मेरे जीवन की सबसे कठिन राह है।।
तुम तो हो रागनी आज भी रात की,
मेरा उज्ज्वल सा जीवन अब गुमराह है।।
जिनने रोका था तब जान पड़ते थे वैरी हमें,
वक्त ने अब सिखाया वो हमराह है ।।
तुम बिछड़ जो गई यूं अधूरे सफर
अब ये जीवन न जीवन बस निर्वाह है।।-
मेरा लेखन सरल मुक्तक की भांति छ्न्द् हो जाये
ये मौसम ऐसे बदले की सुखद मकरंद हो जाये
तुम्हारे भक्ति सागर में मैं इतना डूब जाउँ
कि मेरा मन भी तुम्हारी भांति प्रेमानन्द् हो जाए ।।-
देर से आते हैं तुम्हे लोग समझ में "अंकित"
इस बात से अक्सर तुम्हे नुकसान हुआ है।।-
मुस्कुराते हुए चेहरे भी
गम लाख समेटे रहते है।
अंतर्मन मे चलने वाले,
उत्पात समेटे रहते है ।
जिम्मेदारी के बोझ तले
रहजाता है वह मारा मन ,
इतने गमों के वाद भी,
कुछ ख्वाव समेटे रहते है।।-