यत्र विद्वज्जनो नास्ति श्लाघ्यस्तत्राल्पधीरपि ।
निरस्तपादपे देशे एरण्डोऽपि द्रुमायते ॥
जिस जगह विद्वान लोग नहीं होते वहां पर कम बुद्धि रखने वाले लोग भी श्लाघ्य हो जाते हैं, जैसे [बड़े] वृक्ष जिस प्रदेश में ना हो तो एरंड भी वहाँ वृक्ष कहलाता है।
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ना कर के भी कुछ गुनहगार हो गए
बदनाम भी हुए तो सर-ए-बाज़ार हो गए।
बतला देते तुम मुझे यू ही अकेले में
या हम भी तुम्हारी कहानी के किरदार हो गए।।
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गण्डान्त परिहार सूत्र
नक्षत्रतिथिगण्डानां नास्तीन्दो बलभाजिनि ।
तथैव लग्नगण्डान्तं नास्ति जीवे बलान्विते ।।
यदि जन्म के समय में चन्द्रमा पूर्ण बली हो तो नक्षत्र व तिथि गण्डान्त का दोष नहीं होता है।
यदि गुरु बलवान् हो तो लग्न गण्डान्त का दोष नहीं होता है।-
किसी भी शास्त्रज्ञ को आत्मश्लाघा व आत्ममुग्धता से निश्चित रूप से बचना चाहिए। क्योंकि ज्ञान अपरिमित है और आप सर्वज्ञ कभी नही हो सकते।
हर हर महादेव!-
स्वप्नों को जीवन कहें या जीवन को स्वप्न।
स्वप्न पूर्ण होते नहीं जीवन स्वयं अपूर्ण।।-
जीवन की इस दौड़ भाग में कहाँ रह गया अल्हड़पन।
कहाँ रह गया बचपन अपना कहाँ रह गया खालीपन।।
यूँ ही मारे-मारे फिरते अपनों के कुछ स्वप्न लिए।
और उन्ही के खातिर अपने न्यौछावर सब स्वप्न किए।।-
स्वप्न के प्रकार
दृष्टः श्रुतोनुभूतश्च प्रार्थितः कल्पितस्तथा।
भाविको दोषजश्चैव स्वप्नः सप्तविधो मतः।।
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दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, प्रार्थित, कल्पित, भाविक, दोषज यह सात प्रकार के स्वप्न के भेद शास्त्रों में कहे गए हैं।-
अकल्याणमपि स्वप्नं दृष्ट्वा तत्रैव यः पुनः।
पश्येत स्वप्नं शुभं तस्य शुभमेव फलं भवेत्।।
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अकल्याणकर स्वप्न देखकर पुनः यदि सुस्वप्न दिखे तो सुस्वप्न का ही फल प्राप्त होता है।-